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नागकन्या के पिता बोले- 'महाराज! हमारी जाति के नियमों के अनुसार जिसका विवाह-मंडप में स्वागत होता है, वही कन्या के साथ पाणिग्रहण कर सकता है। मैं अपनी दूसरी पुत्री का विवाह नागकुमार से कर दूंगा।'
विक्रम ने नागकुमारी सुरसुन्दरी तथा तीनों सखियों-हरिमती, गोपा और विजया-इन चारों के साथ एक ही विवाह-मंडप में पाणिग्रहण किया।
सुरसुन्दरी की छोटी बहन रत्नसुन्दरी का विवाह मूल नागकुमार के साथ सम्पन्न हुआ। नागकुमार के पिता ने अपनी कन्या कमलसुन्दरी का विवाह भी विक्रम के साथ कर दिया।
इस प्रकार एक ही रात में पांच रूपवती कन्याओं को विक्रम ने पत्नी-रूप में प्राप्त किया और शेष तीन दंडों को भी प्राप्त कर लिया।
___ नागजाति के लोगों ने वीर विक्रम को रोकने का प्रयत्न किया। उनके अनुरोध को मानकर विक्रम एक दिन वहां रुके। दूसरे दिन पांचों पत्नियों और तीनों दंडों को लेकर वे रत्नपुर आ गए।
यह बात नगरी में फैल गई। तीनों सखियों के मां-बाप बहुत प्रसन्न हुए। अपनी कन्याओं को मालवपति स्वामी के रूप में प्राप्त हों, यह कम सौभाग्य की बात नहीं थी।
कुलदेवी का पूजन किए बिना पत्नियों के साथ बातचीत नहीं हो सकती, इसलिए विक्रम ने उन्हें मतिसार के भवन में रखा।
और दो दिन बाद विजयसिंह की कन्या मलयावती के साथ वीर विक्रम का विवाह सम्पन्न हुआ।
अब वे छह पत्नियों, तीन दंडों को साथ लेकर अवंती की ओर प्रस्थित हुए। ___ वैताल भी मानवरूप धारण कर साथ ही रह रहा था। वीर विक्रम भी मनही-मन समझ गए थे कि इस मित्र ने मनोरंजन-मनोरंजन में छह पत्नियों से पाणिग्रहण करा दिया है।
अवंती पहुंचने के पश्चात् वैताल विदा हुआ।
कमलारानी ने छहों नववधुओं का स्वागत किया। जब महाराज विक्रमादित्य मिले, तब उसने कहा- 'महाराज ! परिग्रह मनुष्य के लिए सोने की बेड़ी बन जाता है। अन्त:पुर तो विशाल है, परन्तु आपके सिर पर भार बढ़ता जाएगा।'
"प्रिये ! मैं क्या करूं? ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि मेरे सामने कोई दूसरा मार्ग ही नहीं बचता। रूप और यौवन के पीछे पागल बनकर मैं ऐसा कर रहा हूं, यह मत सोचना। इतनी रूपवती पत्नियों के होने पर भी मेरे नयनों में तुम और कला ही बसी हुई हो। किन्तु कभी-कभी कीर्ति और प्रतिष्ठा भी हित-शत्रु बन जाती है।'
वीर विक्रमादित्य ३१३