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________________ को मजबूत रखना है। जहां साहस और मनोबल होता है, वहां सिद्धि अवश्य मिलती है। इन विचारों में डूबता - उतरता हुआ अवधूत विक्रमादित्य उसी चौकी पर निद्राधीन हो गया । प्रात:काल राज्याभिषेक की तैयारियां होने लगीं। महामंत्री ने अवधूत योगी से अपनी दाढ़ी और जटा को साफ करा देने की पुरजोर प्रार्थना की, किन्तु अवधूत ने केवल राजवेश धारण करने की ही अनुमति दी । योग्य समय और अपूर्व उत्साह के साथ हजारों-हजारों लोगों के जयनाद के साथ अवधूत का राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ। राज्याभिषेक के पश्चात् जनता अपने नये राजा को देख सके, इसलिए शोभायात्रा का आयोजन किया गया। अवधूत राजा ने अपनी दाढ़ी और जटा को यथावत् रखा। राजवेश धारण कर सिर पर बहुमूल्य मुकुट, भगवा उत्तरीय और धोती धारण की..... कुछेक मूल्यवान् अलंकार पहने। इस प्रकार अवधूत राजा भगवे वस्त्रों में होने पर भी अत्यन्त आकर्षक और प्रभावी लग रहे थे । राजसिंहासन पर आरूढ़ होने के पश्चात् उन्होंने महामंत्री बुद्धिसागर को अपने पास बुलाकर तीन आज्ञाएं प्रसारित करने का आदेश दिया १. सभी अपराधियों को मुक्त करना । २. सात दिन तक सूर्योदय से सूर्यास्त तक दान देने की व्यवस्था करना । ३. सात दिन तक कोई भी व्यक्ति राजभवन में आकर भोजन प्राप्त कर सकता है। महामंत्री ने तीनों आदेश प्रसारित कर दिए। राजसभा के सदस्यों ने जय-जयकार किया । शोभा-यात्रा के लिए सज्जित रथ में बैठने से पूर्व अवधूत महाराजा ने महाप्रतिहार को आदेश दिया कि आज राजभवन में मेरे शयनकक्ष के द्वार पर विविध फल, मिठाइयां, उड़द के बाकले आदि सामग्री से थाल भरकर रखे जाएं और राजभवन के चारों ओर मजबूत पहरा रखा जाए। कोई भी दुष्ट देव प्रवेश न कर सके, ऐसी व्यवस्था करनी है। महाप्रतिहार ने इस आशा को शिरोधार्य किया । शोभायात्रा वहां से चल पड़ी। अवंती नगरी के लोगों को आश्चर्यमिश्रित आनन्द हो रहा था। लोग भूल गए थे कि आज रात को दुष्ट देव का प्रकोप होगा और यह बेचारा नौजवान योगी मौत के मुंह में चला जाएगा। उत्साह के कारण लोग विपत्ति को भूल जाते हैं। वीर विक्रमादित्य २५
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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