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________________ वीर विक्रम भी लौटे और चंपकलता के घर की पूरी पहचान कर अपने निवासगृह की ओर चले गए। ___ निवास-स्थान पर पहुंचकर वीर विक्रम ने अपना वेश बदला और बैठककक्ष में आ गए। महाराजा विजयसिंह, मतिसार आदि वहां आ पहुंचे। राजा विजयसिंह ने औपचारिक वार्तालाप के पश्चात् कहा-'कृपानाथ! मैं आपकी छाया के नीचे राज कर रहा हूं। मेरी एक प्रार्थना आपको स्वीकारनी होगी। मेरी एक सोलह वर्षीया कन्या मलयावती है। वह अत्यन्त सुन्दर और गुणयुक्त है। इस कन्या का हाथ मैं आपके हाथ में देकर निश्चिंत होना चाहता हूं। आप महान् राजराजेश्वर हैं। मुझे चिन्तामुक्त करेंगे,यही आशा है।' वीर विक्रम विचारमग्न हो गए। कहां पंचदंड प्राप्त करने की बात और कहां विवाह का प्रसंग! ओह ! मैं जहां जाता हूं, वहां यही बात सामने आती है। विक्रम ने कहा- 'राजन् ! इतना आग्रह है तो मैं आपकी बात स्वीकार करता हूं।' राजा विजयसिंह ने सगाई की रस्म पूरी की। जब मलयावती को यह ज्ञात हुआ कि उसका विवाह अवंतीपति से होने वाला है तो वह बहुत हर्षित हुई। उसने सोचा, जिन्हें देवकन्याएं भी वरमाला पहनाने के लिए लालायित रहती हैं, उनकी वह अर्धांगिनी बनेगी, इस विचार से ही वह रोमांचित हो उठी। और रात्रि के प्रथम प्रहर में वीर विक्रम अदृश्यकरण गुटिका धारण कर चंपकलता के पिता के घर की ओर निकल पड़े। वीर विक्रम जब चंपकलता के घर पहुंचे, तब चारों स्त्रियां भोजन आदि से निवृत्त होकर एक खंड में बैठी थीं। विक्रम उस खंड में गए और एक कोने में खड़े रह गए। चारों सखियों में चंपकलता एक वैश्य की पुत्री थी। हरिमती एक सार्थवाह की कन्या थी, विजया एक माली की पुत्री थी और गोपा क्षत्रिय कन्या थी। चंपकलता मतिसार के पुत्र से विवाह कर चुकी थी और शेष तीनों अविवाहित थीं। विक्रम ने देखा कि चंपकलता की तीनों सखियां रूपवती और उत्तम स्वभाव वाली हैं। प्रत्येक के नयनों से पवित्रता झांक रही है। आनन्दभरी वार्ताएं चल रही थीं। हरिमती बोली- 'चंपकलता! कल तू हमारे साथ चलना।' 'कहां?' ३०६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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