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कश्मीर के जिस महान् शिल्पी ने बत्तीस पुतलियों वाला सिंहासन बनाया था, उसने एक मांत्रिक अश्व तैयार किया था, किन्तु वह अपने अश्व की करामात विक्रम को बताए, उससे पूर्व ही उसका देहावसान हो गया।
इतनी रानियां होने पर भी वीर विक्रम के केवल सात ही कन्याएं थीं, पुत्र एक भी नहीं था । किन्तु उन्हें इस विषय की चिन्ता नहीं थी। विक्रम शालिवाहन की पुत्री सुकुमारी को भूल ही गए थे। यदि वे उसकी खोज करते तो उन्हें ज्ञात हो जाता कि उनकी प्रियतमा सुकुमारी की गोद में छह वर्ष का पुत्र बड़ा हो रहा है।
५७. रत्नपुर में
मतिसार मंत्री अपने परिवार को साथ ले पड़ोस के रत्नपुर राज्य में चला गया; क्योंकि वहां उसके पूर्वज रहते थे और उसका वहां एक मकान भी था।
मतिसार के हृदय में एक प्रश्न उठता और वह सदा ही असमाहित रहता । वीर विक्रम के द्वारा ऐसा अन्याय कभी नहीं हुआ, फिर भी उन्होंने मेरी संपत्ति का हरण कर मुझे देश निकाला क्यों दिया ? मैं अपने कार्य में कभी असावधान नहीं रहा। मैंने कभी अन्याय नहीं किया, फिर भी ऐसा क्यों हुआ ?
मंत्री की पत्नी बुद्धिमती, निपुण और शांत थी। उसने इस आपत्ति को किसी कर्म का फल मानकर संतोष कर लिया। किन्तु मतिसार की पुत्रवधू अति निपुण थी। वह रत्नपुर की थी और उसका विवाह छह मास पूर्व ही हुआ था। वह पशु-पक्षियों की भाषा भी जानती थी। वह भी विक्रम के इस कार्य की पृष्ठभूमि समझ नहीं पा रही थी। उसने यही मान रखा था कि राजा, बाजा और बन्दर का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। वह पुत्रवधू रत्नपुर आकर इसलिए प्रसन्न थी कि वहां अपने माता-पिता और परिवार के निकट रह सकेगी।
तिसार मंत्री की उम्र लगभग चौवन वर्ष की थी। उनकी वहां बपौती थी । मकान और खेत थे, इसलिए आजीविका की विशेष चिन्ता नहीं थी । किन्तु अपनी प्रतिष्ठा को आंच न आए, इसलिए पारिवारिक - जनों को यही कहा था कि वे एक वर्ष के लिए निवृत्त हुए हैं।
एक दिन नागदमनी वीर विक्रम से मिलने राजभवन में आयी । वीर विक्रम अभी अन्त:पुर से आए नहीं थे। कमला रानी ने नागदमनी का भावभीना स्वागत किया और उसे एक खण्ड में बिठाया ।
लगभग एक घटिका के पश्चात् वीर विक्रम आ पहुंचे। नागदमनी को देखकर उन्हें तीन दंडों की स्मृति हो आयी ।
३०२ वीर विक्रमादित्य