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वीर विक्रम ने अपने सभी साथियों और पंडितजी को स्वर्णदान किया । तदनंतर वैताल ने पंडितजी और उनके तिरसठ विद्यार्थियों को सोपारक नगरी में पहुंचा दिया।
वैताल की दैवी शक्ति से वीर विक्रम का पूरा रसाला रात्रि के प्रथम प्रहर में अवंती के राजभवन में पहुंच गया।
कमला रानी ने अपने प्रियतम और नयी रानी चन्द्रावती का बहुत भावपूर्ण सत्कार किया ।
कुलदेवी की पूजन विधि सम्पन्न कर वीर विक्रम ने सभी रानियों को एकत्रित किया और उन्होंने दो दंड कैसे प्राप्त किए इसकी संक्षिप्त जानकारी दी। फिर विक्रम ने अपनी रानी देवदमनी की मां नागदमनी को दो दंड - सर्वरसदंड और वज्रदंड-सुपुर्द करते हुए कहा- 'अब शेष तीन दंडों की बात बताओ ।'
नागदमनी बोली- 'महाराज ! आप आठ दिन तक विश्राम करें। फिर मैं सारी बात बताऊंगी।'
उसी रात वैताल अपने स्थान पर चला गया।
आठ दिन बाद नागदमनी ने विक्रम से कहा- 'कृपानाथ ! आपके मंत्रियों एक मंत्री का नाम मतिसार है ?'
'हां ।'
'आप उसकी सारी सम्पत्ति जब्त कर उसे देश निकाला दे दें।' 'ऐसा अन्याय मेरे हाथ से ?'
बीच में ही नागदमनी ने हंसते-हंसते कहा- 'आपको अन्याय करने के लिए नहीं कहती। शेष तीन दंडों को प्राप्त करने का ही उपाय बता रही हूं।'
'फिर ?'
'फिर आप छह महीने यहीं रहें। मैं मतिसार के जाने के पश्चात् छठे महीने आपको बात बताऊंगी।' नागदमनी बोली ।
विक्रम के लिए नागदमनी की आज्ञा मानने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था ।
दूसरे ही दिन उसने मतिसार मंत्री की सारी सम्पत्ति जब्त कर उसको सारे परिवार के साथ देशनिकाला दे दिया ।
लोग इसके कारणों से अनजान थे, इसलिए विविध चर्चाएं होने लगीं। महामंत्री भी इस आकस्मिक घटना से स्तब्ध रह गए। वीर विक्रम ने कमलारानी को इस घटना की पृष्ठभूमि समझा दी थी।
कमलारानी को संतोष हुआ ।
वीर विक्रमादित्य ३०१