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'तुम्हें जहां योग्य लगे वहां।'
'अच्छा' कहकर उमादे पति की चरणरज मस्तक पर चढ़ाकर शांत भाव से चली गई।
विक्रम ने देखा कि उमादे देखने में अत्यन्त शांत है, किन्तु इसका रूप अजोड़ है। इसके शरीर को वय का अधिक स्पर्श नहीं हुआ है। देखने वाले को यही लगता है कि यह बीस वर्ष की युवती है।
फिर विक्रम सोमशर्मा को नमस्कार कर विदा हो गया। दूसरे दिन वह यथासमय अपना सामान लेकर वहां आ पहुंचा।
पंडितजी ने उसके निवास की विशेष व्यवस्था की। सभी विद्यार्थियों से विलग उसका निवास था।
वीर विक्रम ने गुरुदेव का हार्दिक आभार माना। सोमशर्मा ने उसके मस्तक पर हाथ रखकर कहा, 'वल्लभ! सामवेद का प्रारम्भ दस दिन के बाद होगा, क्योंकि महाज्ञान की प्राप्ति के लिए दिन अच्छा होना चाहिए।'
'ठीक है, गुरुदेव! आपके आशीर्वाद से मेरा कल्याण अवश्य होगा।'
वीर विक्रम को पंडितजी की पाठशाला में स्थान मिल गया। उसे बहुत संतोष हुआ। उसे सामवेद आदि कुछ भी सीखना नहीं था। उसे तो केवल उमादे के चरित्र को जानना था।
और दो दिन में विक्रम यह जान सका कि उमादे का आचार एक पतिव्रता नारी जैसा ही है। वह किसी के सामने ऊंची नजर करके भी नहीं देखती थी, स्वामी की भक्ति में परम आह्लाद का अनुभव करती और स्वामी की छाया बनकर रहती थी। उमादे का व्यवहार उत्तम था। उस-जैसी स्वामिभक्ति तो भाग्य से ही देखने को मिलती। किन्तु उसकी आंखों में कोई जादूथा। उसके यौवन में अपूर्व चंचलता थी। ऐसा क्यों? विक्रम ने मन-ही-मन सोचा, रात को जागते रहने के सिवाय इस नारी के चरित्र को नहीं परखा जा सकता। इसलिए रात को सोने का बहाना कर जागते रहना चाहिए।
जहां विक्रम सोता था, वहां दूसरे ग्यारह विद्यार्थी और पंडितजी भी सोते थे। पास वाले कक्ष में उमादे सोती थी।
___पंडितजी के आश्रम का यह एक नियम था कि रात्रि के प्रथम प्रहर के पूरा होते ही सब विद्यार्थी सो जाएं और रात्रि के चौथे प्रहर के प्रारम्भ में उठ जाएं और पाठ की आवृत्ति करें। ___पंडितजी भी इसी नियम को पालते थे और इसलिए वे विद्यार्थियों के साथ सो जाते। २७८ वीर विक्रमादित्य