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________________ 'पंडित भट्टमात्र ! क्या वे अवंती में पाठशाला चलाते हैं ?' 'जी हां! उन्होंने मुझे सामवेद सीखने के लिए यहां भेजा है। मुझ पर कृपा कर आप मुझे सामवेद का ज्ञान दें।' 'उत्तम! उत्तम.....सामवेद के गायक तो मालव और गुजरात में भी अनेक हैं.....! परन्तु तुम बहुत दूर से आए हो। मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगा। तुम यहां कहां ठहरे हो?' ___ 'मैं एक पांथशाला में ठहरा हूं।' 'तो तुम्हें यहां आना पड़ेगा और कम-से-कम छह मास यहीं रहना होगा। यहां तुम्हें भोजन भी मिल जाएगा। निवास के लिए अन्य विद्यार्थियों के साथ रहना होगा।' 'मैं धन्य हुआ, पंडितजी!' कहकर विक्रम ने सोमशर्मा की ओर देखा। सोमशर्मा का चेहरा तेजस्वी और कपाल भव्य था। वे लगभग चालीस वर्ष के लग रहे थे। 'तुम्हारा नाम?' 'वल्लभ विक्रम। 'नाम सरस है। तुम्हारे अवंती के राजा का नाम भी विक्रमादित्य है। क्यों?' 'जी हां।' 'अच्छा तो तुम कल यहां सूर्योदय के बाद तीन घटिका बीत जाने पर आ जाना। वहां पांथशाला में यदि सुविधा न हो तो अभी तुम अपना सामान लेकर आ सकते हो।' 'जी! मैं कल ही आपके चरणों में उपस्थित होऊंगा।' उसी समय पंडितजी की तीस वर्षीया पत्नी उमादे खंड में आयी और स्वामी के चरणों में नमन कर बोली- 'स्वामी! आपके लिए क्या भोजन बनाऊं?' . ___प्रिये! मेरे लिए कोई विशेष वस्तु बनाने की आवश्यकता नहीं है। जो भी होगा ठीक है।' 'नहीं, प्रभु! आपको बहुत श्रम करना पड़ता है। जो कुछ आपको खिलाने से मेरा मन कैसे माने? आपकी आज्ञा हो तो आज क्षीरमोदक बनाऊं।' सोमशर्मा ने प्रसन्न दृष्टि से पत्नी की ओर देखकर कहा, 'जैसी तुम्हारी इच्छा! प्रिये! देखो, यह एक नौजवान विद्यार्थी कल से अपनी पाठशाला में आएगा। यह ठेठ अवंती से सामवेद पढ़ने आया है।' उमादे ने विक्रम की ओर देखा भी नहीं। उसने मात्र इतना ही कहा, 'आपने नये शिष्य के लिए निवास-स्थान कौन-सा रखा है?' वीर विक्रमादित्य २७७
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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