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नागदमनी रत्नपेटिका को खोलकर, रत्नों की पूरी जांच कर बोली'महाराज! ये तो छत्र की झालर के रत्न हैं....अभी पंचदंड प्राप्त करना शेष है।'
'तो वह कहां मिलेगा?'
'महाराज! आप सोपारक नाम की नगरी में पधारें....वहां सोमशर्मा नाम का ब्राह्मण रहता है। उसकी प्रिया का नाम है उमादे। उसका चरित्र जानकर आप यहां आएं।'
"किन्तु पंचदंड.......?'
'मैं जैसा कहूं वैसा आप करें....आपको सब कुछ ज्ञात हो जाएगा।' नागदमनी ने कहा।
विक्रम ने मन-ही-मन सोपारक नगरी जाने का निर्णय कर लिया।
५३. नारी की लिप्सा सोपारक नगरी अवंती के उत्तर में लगभग तीन सौ कोस की दूरी पर थी। चार दिन बाद वीर विक्रम अपने परिवारजनों तथा मंत्रियों से आज्ञा लेकर अपने मित्र अग्निवैताल के सहयोग से सोपारक नगरी की सीमा में रात्रि के चतुर्थ पहर में पहुंच गया।
अग्निवैताल बोला- 'महाराज! इस प्रवास का कारण क्या है?'
'पंचदंड की प्राप्ति के लिए मैंने यह प्रवास करने का निश्चय किया है।' विक्रम ने कहा।
'ओह! नागदमनी के कथनानुसार आपका पुरुषार्थ चल रहा है। इस कार्य में मेरा कोई उपयोग हो सके तो...'
___ 'मित्र! तुम्हारी सहायता के बिना मैं एक डग भी नहीं भर सकता। जबजब आश्यकता होती है तब मैं तुम्हें याद करता ही हूं। इस कार्य में जब-जब आवश्यकता महसूस होगी तब-तब तुम्हें याद करूंगा ही। मैं तुम्हें साथ ही रखता, पर अभी तुम नवपरिणीत हो, मुझे भाभी के उलाहने का भय लगता है। मुझे उसके नि:श्वास नहीं सुनने हैं।'
दोनों हंसने लगे। अग्निवैताल विक्रम की अनुमति ले अदृश्य हो गया। .
रात्रि का चौथा प्रहर चल रहा था। मंद प्रकाश में भी सोपारक नगरी की रमणीयता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रही थी।
__ पास में एक स्वच्छ सरिता भी बहती थी। विक्रम ने वहां प्रात:कार्य सम्पन्न किया और प्रात:काल होने पर वीर विक्रम अपना थैला लेकर नगरी की ओर चल पड़ा।
वीर विक्रमादित्य २७५