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________________ पद क्यों न प्राप्त होता हो, पर यदि वह मृत्यु का वाहक बनता है तो कोई भी मनुष्य उस सुख को नहीं चाहेगा। महामंत्री बुद्धिसागर ने मंत्रिमंडल तथा गण्यमान्य नागरिकों के समक्ष सारी परिस्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा- 'सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि इतने विशाल राज्य की बागडोर संभालने के लिए कोई तैयार नहीं है। महाराज भर्तृहरि किसी भी अवस्था में लौटना नहीं चाहते। वे राज्य की चर्चा तक नहीं करते और सदा परम वैराग्य में मग्न रहते हैं। युवराजश्री कहां हैं, क्या कर रहे हैं-कुछ भी ज्ञात नहीं हो पा रहा है। केवल इतनी जानकारी प्राप्त हो सकी है कि वे किसी आश्रम में दीक्षित हो चुके हैं। इस स्थिति में अब क्या करना चाहिए ? राजसिंहासन सूना पड़ा रहे, यह किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता।' एक नागरिक ने पूछा-'सिंहासन पर जिस देव की कुदृष्टि पड़ी है, उस देव को तृप्त करने का क्या कोई उपाय नहीं है?' __मंत्रीश्वर बोले- 'जो कुछ हम कर सकते थे, सब कुछ किया जा चुका है। प्रेतविद्या में निष्णात व्यक्तियों ने यही कहा है कि वह देव किसी के वश में नहीं आ सकता।' 'किन्तु हमारे देश में अनेक तपस्वी साधु-महात्मा हैं, जिनके आशीर्वाद से यह उपद्रव शान्त हो सकता है। हमें उन महात्माओं की शरण लेनी चाहिए। अन्त में एक उपाय शेष रह जाता है कि हथिनी जिस व्यक्ति पर कलश उंडेले उसी व्यक्ति को राजा के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए।' नगरसेठ ने कहा। नगरसेठ के विचार कुछ युक्तिपूर्ण लगे। मंत्रियों ने अनेक साधु-संन्यासियों से आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास किया। उन्हीं दिनों अवंती नगरी में एक जैन तपस्वी मुनि का आगमन हुआ। महामंत्री बुद्धिसागर ने नगरसेठ से तपस्वी मुनि की बात कही। नगरसेठ बोला'एक तपस्वी मुनि ने अपने शिष्यों के साथ कल ही नगर में प्रवेश किया है।' 'तो फिर हम उनके दर्शन के लिए चलें'-यह कहकर दोनों उस ओर चल पड़े। नगरसेठ ने कहा- 'मंत्रीश्वर ! जैन मुनि इन सब सांसारिक बातों में रस नहीं लेते।' 'हम एक बार चलें। संभव है, सारी बात ज्ञात कर वे कुछ पसीज जाएं।' मंत्रीश्वर ने कहा। मुनिश्री जयवर्धन वृद्ध थे। घोर तपस्वी थे-उनके दोनों शिष्य विद्वान्, तेजस्वी और सौम्य थे। वीर विक्रमादित्य १६
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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