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________________ ४६. विक्रम का निर्णय चन्द्रभूप एक समृद्ध और शक्तिशाली राजा था.....उसकी सेना भी पूर्ण रूप से प्रशिक्षित और अजोड़ गिनी जाती थी। आस-पास के राज्यों के कोई भी राजा उससे शत्रुता करना नहीं चाहते थे। वे सब उसकी मित्रता की आकांक्षा करते थे। अनेक राज्य उसके प्रभाव में थे। किन्तु राजकुमार भीम का पिता चन्द्रभूप से शत्रुता रखता था। अपने हृदय में पलने वाले वैर-भाव को वह युद्ध-स्थल में शान्त करने के लिए कभी समर्थनहीं था, इसलिए मन-ही-मन वह अकुलाहट का अनुभव करता था। जब उसको यह ज्ञात हुआ कि चन्द्रभूप की कन्या किसी राजकुमार के गले में वरमाला डालेगी, तब उसने अपने कुरूप पुत्र भीमकुमार का सुन्दर चित्रांकन एक कुशल चित्रकार से करवाया और उसे चन्द्रभूप के पास भेज दिया। उस चित्रांकन में कुरूपता के बदले सुरूपता प्रदर्शित की गई थी। उसने गुप्त रूप से चित्रांकन राजकुमारी के भवन में भी भेज दिया था। राजकुमारी लक्ष्मीवती ने आगत सभी चित्रांकन देखे, पर उसके नयन भीमकुमार के चित्रांकन पर अटक गए। उसके हृदय में ऐसे सुदृढ़ और सुन्दर युवक का साहचर्य प्राप्त करने की उमंग उठी और उसने भीमकुमार की छवि पसन्द कर ली। राजा चन्द्रभूप ने अपनी पुत्री की पसन्दगी को देखा और उस चित्रांकन के पीछे अंकित परिचय को पढ़ा। उसने पुत्री से कहा- 'पुत्री ! यह अपने एक दुष्ट शत्रु का पुत्र है। यह छवि कैसे आयी?' राजकुमारी ने कहा-'पिताश्री! यह चित्रांकन अन्यान्य चित्रांकनों के साथ ही पड़ा था....मुझे तो केवल रूप-गुण की दृष्टि से ही पसन्द करना था और यह छवि मुझे जंच गई।' ___'कोई बात नहीं, अब तुम किसी अन्य छवि को पसन्द कर लो। क्योंकि एक शत्रु के घर तुम जाओ और वहां पग-पग पर तुम्हारा अपमान और तिरस्कार होता रहे, यह मुझे सहन नहीं हो सकता।' राजा ने कहा। किन्तु लक्ष्मीवती भीमकुमार के कृत्रिम चित्र पर मुग्ध हो चुकी थी और मन में अंकित होने वाले प्रथम चित्र को भुला पाना सहज नहीं था, इसलिए वह मौन रही। पिता के समक्ष कुछ नहीं बोली। राजकुमारी लक्ष्मीवती ने गुप्त रूप से एक संदेश भीमकुमार को भेजा-'आप एक निश्चित दिन यहां आएं और मेरा अपहरण कर मुझे ले जाएं। मैंने आपको अपने भावी पति के रूप में पसन्द कर लिया है। अपहरण करना क्षत्रिय के लिए वीर विक्रमादित्य २४६
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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