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________________ विक्रम ने तीनों रानियों का आलिंगन किया और वे वहां से राजसभा की ओर चल पड़े। राजसभा का कार्य सम्पन्न कर उन्होंने महामंत्री, महाबलाधिकृत, नगरसेठ और अन्य मंत्रियों को रात के समय राजभवन में आने को कहा। रात्रि के प्रथम प्रहर के पश्चात् सभी मंत्री, बलाधिकृत, नगरसेठ आदि आ गए। विक्रम ने सबके समक्ष पंचदंड वाले छत्र की चर्चा की और ताम्रलिप्ति जाने की इच्छा बताई। विक्रम ने यह भी स्पष्ट कहा कि वे अकेले ही जाएंगे। कोई साथ नहीं रह सकेगा। महाराज का यह निर्णय सुनकर सब अवाक रह गए। ऐसा साहस अकेले महाराज करें, यह उचित नहीं लगा। सबने अपने-अपने तर्क रखे और ऐसे कार्य में संलग्न न होने की प्रार्थना की। वीर विक्रम अपने निश्चय पर अटल थे। वे बोले, 'मैं सभी की बातें समझता हूं। आप सब जानते हैं कि मैं एक साहस-प्रिय क्षत्रिय हूं। मेरे रक्त के कण-कण में क्षत्रियत्व भरा पड़ा है। इसलिए मुझे किसी प्रकार का भय नहीं लगता। आप मेरे उत्साह को बढ़ाएंगे तो मेरा पुरुषार्थ अवश्य ही सफल होगा।' सभी महाराज विक्रमादित्य की तेजस्वी आंखों को देखने लगे। सभी ने उन्हें पुरुषार्थ करने की प्रेरणा दी और अपने प्रिय राजराजेश्वर को नमन कर सभी अपने-अपने भवन की ओर चले गए। दूसरे दिन मध्य रात्रि के पश्चात् वीर विक्रम अपने निजी कक्ष में गए। वहां उन्होंने अपने मित्र अग्निवैताल के लिए उत्तम मिष्ठान्न आदि अनेक वस्तुओं से थाल भरकर रखवा दिये थे। सब कुछ वहां उचित है, ऐसा विश्वास हो जाने पर उन्होंने अग्निवैताल को याद किया। लगभग अर्धघटिका के पश्चात् अग्निवैताल अपनी प्रिया के साथ वहां आ पहुंचा। . विक्रम ने दोनों का आदर-सत्कार किया और दोनों को भोजन करने की प्रार्थना की। दोनों ने प्रसन्न मन से भोजन किया। फिर दोनों ने केसर-कस्तूरी-युक्त दूध पिया। अग्निवैताल ने फिर पूछा, 'महाराज ! क्या आज्ञा है ?' विक्रम बोले-'मित्र! मुझे ताम्रलिप्ति नगरी में जाना है।' 'इतनी दूर? वहां का कोई काम हो तो मैं कर आऊं?' 'नहीं, ऐसा नहीं....कार्य तो मुझे ही करना होगा।' 'ऐसा कौन-सा कार्य है, महाराज! क्या कोई सुन्दरी नारी का निमंत्रण है?' वैताल-पत्नी ने हंसते-हंसते प्रश्न किया। २४० वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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