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भट्टमात्र बोला- 'महाराज! मैंने एक बात आपसे नहीं कही। किन्तु नदी के उस दूसरे तट से मालव देश की राज्य-सीमा प्रारम्भ होती हैं, इसलिए मैं वह बात आपको बता देना चाहता हूं।'
'बोलो, क्या बात है?'
'मैं भी मालव देश का निवासी हूं। मेरा गांव यहां से दस कोस की दूरी पर ही है। अवंती यहां से साठ कोस दूर होगी। मेरी प्रार्थना है कि आप राजधानी की ओर पधारें।'
'नहीं, मित्र ! मेरी उत्तरप्रदेश की ओर जाने की इच्छा है। मैं अवंती जाना नहीं चाहता।'
'किन्तु महाराज! जाना होगा ही। क्योंकि अवंती का राजसिंहासन आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।' ___ 'मैं नहीं समझ सका।'
'अवंती के विषय में मैंने अनेक बातें सुनी हैं। महादेवी के प्रति महाराज भर्तृहरि का अपार प्रेम था। किन्तु महादेवी अनंगसेना उस प्रेम की पूजा नहीं कर सकी। वह अश्वपाल नामक एक महावत के प्रेमजाल में फंस गई। महाराज भर्तृहरि ने जब यह जाना तब से वे टूट गए। उनको बहुत बड़ा आघात लगा और वे राज्य का त्याग कर, कषाय वस्त्र धारण कर चले गए। महादेवी अनंगसेना ने दूसरे ही दिन आत्महत्या कर प्राण दे डाले। तत्पश्चात् अवंती के राजसिंहासन की विचित्र स्थिति बन गई। जिन्होंने उस सिंहासन पर बैठने का प्रयत्न किया, वे दूसरे ही दिन मौत के मुंह में फंसते गए-इस परिस्थिति में यदि आप वहां शीघ्र नहीं पहुंचते हैं तो बहुत अहितकर होगा।' भट्टमात्र ने कहा।
विक्रमादित्य अवाक् रह गए। दो क्षण बाद वे बोले- 'भट्टमात्र ! यह बात मानने योग्य नहीं लगती।'
'महाराज! संसार में अनेक असंभव बातें भी घटित होती हैं। आपका देश से निष्कासन होगा, क्या ऐसा कोई मान सकता था?'
विक्रमादित्य विचारमग्न हो गए।
भट्टमात्र ने कहा-'सियाल ने जो शकुन कहा है, वह कभी असत्य नहीं होगा। आप नि:संदेह रूप से अवंती की ओर प्रस्थान करें।'
'और तुम?'
'मैं अपने गांव में जाऊंगा। वृद्ध माता-पिता को देखे तीन वर्ष हो गए हैं। पत्नी भी तो प्रतीक्षा करती होगी।'
वीर विक्रमादित्य १७