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अवंती नगरी बहुत समृद्ध और विशाल थी। वहां सैकड़ों कोट्याधीश रहते थे। वस्त्र-व्यापारी भी प्रचुर थे। अवंती की नर्तकियां, वेश्याएं, गणिकाएं भी प्रसिद्ध थीं। उनके निवास स्थान अलग थे। विशेष बात यह थी कि अवंती का तेलीवाड़ा समग्र मालव प्रदेश में प्रसिद्ध था। वहां बारह सौ कोल्हू चलतेथे। वहां 'गंगुडोसी' नाम की तेलिन रहती थी, जो बानवे वर्ष की थी। उसी के कारण वह तेलीवाड़ा समूचे देश में विख्यात हो गया था। उस डोसी का एक नाम 'गांगणी' तेलिन भी था। वह मंत्र-विशारद थी। वह आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को नीचे गिराने, उच्चाटण, मारण, वशीकरण, स्तंभन, आकाश-गमन, रूप-परिवर्तन आदि क्रियाओं में निपुण थी। उसने इन सारी विद्याओं को सिद्ध कर लिया था। इन्हीं विद्याओं के कारण वह तेलीवाड़ा जगत्-विख्यात् हो गया था। 'गंगुडोसी' अत्यन्त वृद्ध होने के कारण घर में ही रहती, बाहर नहीं निकलती थी। वहीं 'नागदमनी' नामक की सैंतीस वर्ष की एक तेलिन बहुत प्रभावशाली थी और उसकी सतरह वर्ष की कन्या देवदमनी शापभ्रष्ट देवकन्या जैसी लगती थी।
एक दिन महाराजा विक्रम अपने रक्षकों, महामंत्री तथा महाप्रतिहार के साथ प्रात:भ्रमण के लिए गांव के बाहर निकले। लौटते समय वे तेलीवाड़ा के मध्य से गुजरे। उस समय देवदमनी अपने मकान के सामने गली वाले रास्ते को बुहार रही थी। धूल उड़ रही थी। विक्रम के साथ वाले दो सेवक उसके पास आकर बोले'ऐ छोकरी! देखती नहीं, महाराजा विक्रम इस ओर आ रहे हैं ? इतनी धूल क्यों उड़ा रही है? एक ओर हो जा।'
देवदमनी ने दोनों सेवकों की ओर देखकर कहा- 'राजा है तो वह अपने घर का है, मुझे क्या? मैं तो अपना आंगन बुहार रही हूं। तेरे राजा ने कोई पंचदंड वाला छत्र धारण नहीं कर रखा है कि जो धूल से खराब हो जाए।' यह कहकर देवदमनी बुहारने के काम में लग गई।
उसी समय महाराजा विक्रम और महामंत्री के अश्व वहां खड़े रह गए और उन्होंने देवदमनी के शब्द सुन लिये थे। वीर विक्रम ने देवदमनी की ओर देखा। उसको देखते ही राजा स्तंभित हो गए। ऐसा रूप! ऐसा तेज! ऐसा मोहक यौवन! क्या यह तेलिन है या देवकन्या? विक्रम ने महामंत्री के सामने देखकर इस कन्या के विषय में पूरी जानकारी करने के लिए संकेत किया और स्वयं महाप्रतिहार को साथ ले आगे बढ़ गए।
राजभवन जाने के पश्चात् स्नान आदि से निवृत्त होकर विक्रम बैठक-कक्ष में आए। उसी समय महामंत्री भट्टमात्र आ पहुंचे। विक्रम ने पूछा- 'वह लड़की कौन थी?' २१० वीर विक्रमादित्य