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विक्रम ने कहा-'तुम्हारी पत्नी ?'
बालक ने कहा- 'राजन्! पांच दिन बाद वह सेठ श्रीकान्त के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेगी और भविष्य में वही मेरी पत्नी होगी। राजन् ! तुम अपने अज्ञान को तत्काल दूर कर लो।' यह कहकर बालक मौन हो गया।
विक्रम को अपनी भूल ज्ञात हुई। उन्होंने सोचा, अभी मेरे पुण्य प्रबल हैं। वे राजभवन गए और महामंत्री को तत्काल आज्ञा दी कि दान और उपकार के कार्यों में रुकावट न आए। वे पूर्ववत् चालू कर दिए जाएं।
४२. शतरंज का खेल कमलारानी जब अपना व्रत सम्पन्न कर राजभवन में आयी तब विक्रम ने उसको अपने हाथों से 'पारणा' कराते हुए कहा-'प्रिये! तुम्हारी आराधना का शुभ परिणाम तुम्हें उपलब्ध हो गया है। मैं समझता हूँ कि मेरे पुण्य को तुम्हारे जैसी अर्धागिनी ही बचा सकती है और नीचे गिरते हुए को थाम सकती है। यदि मुझे यह विवेक नहीं मिलता तो दान और उपकार की प्रवृत्ति बन्द हो जाती।' यह कहकर विक्रम ने भील और भीलनी के उपकार और उसके परिणाम की पूरी जानकारी कमलारानी को दी।
कमलारानी ने प्रेम-भरी दृष्टि से स्वामी को देखते हुए कहा-'प्राणनाथ! आपका पुण्य-बल प्रबल है । आप-जैसे प्रतापी पति मुझे प्राप्त हुए, यह कम गौरव की बात नहीं है। बहुत बार मनुष्य विविध प्रकार के नशों में भान भूल जाता है। किन्तु आप सरल हृदय हैं। भूल को भूल रूप में स्वीकार कर लेते हैं।'
चार दिन बाद राजा वीर विक्रम सभी रानियों को साथ लेकर जल-विहार के लिए गए। विक्रम का जीवन सभी तरह से आनन्दित था। उनतीस-उनतीस रानियों के होते हुए भी किसी रानी को असंतोष नहीं था। सबके लिए अलगअलग निवास-स्थल थे। सबके पृथक् धन-भण्डार और अलंकार थे। वे सभी प्रकार से सुखी थे। पर एक बात का दु:ख था कि इतनी रानियां होने पर भी उनके कोई पुत्र नहीं था, सात पुत्रियां थीं। वे यह भूल गए थे कि सुकुमारी उनकी पत्नी है और वे एक सुन्दर पुत्र के पिता बन चुके हैं।
विक्रम अपने राज्यकार्य में भी सचेत रहते थे। वे यदा-कदा नगरचर्चा जानने के लिए गुप्तवेश में निकल पड़ते और जनता की चर्चा को ध्यान से सुनते। वे मानते थे कि लोग मुंह पर प्रशंसा करते हैं, पर राज्य-संचालन मे कहां क्या त्रुटि रहती है, इसको जानना हो तो नगरचर्चा से अधिक सुन्दर कोई उपाय नहीं है।
वीर विक्रमादित्य २०६