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________________ को एक ओर रखा और उस व्यक्ति से सटकर पलंग पर बैठ गई। उसने मिठाई का थाल बीच में रख दिया। विक्रम और किसान-दोनों रोष से सुलगती आंखों से यह दृश्य देख रहे थे। किसान की पत्नी मिठाई के ग्रास उस व्यक्ति के मुंह में देने लगी और वह प्रेमी अपनी प्रेमिका के मुंह में मिठाई के ग्रास देने लगा। फिर दोनों परस्पर हास्य-विनोद करने लगे। यह दृश्य विक्रम के लिए असह्य हो गया। वे दोनों उस कोने से बाहर आए और विक्रम प्रचण्ड स्वर में बोले- 'दुष्ट ! पर-स्त्री के साथ क्रीड़ा करते हुए तुझे शर्म नहीं आती?' वह हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति खड़ा हो गया और बोला-'अरे! मुझे शिक्षा देने वाला तू कौन है ? हमारे दोनों का संबंध तो कुंआरेपन से चला आ रहा है। तुम दोनों बाहर चले जाओ। हमारे रंग में भंग मत करो।' किसान बोला- 'आज तो तेरा अन्त करने पर ही मेरा छुटकारा हो सकता है।' वह व्यक्ति खिलखिलाकर हंसा और चीते की तरह स्फूर्ति से कूदकर दोनों के पास आ पहुंचा। दोनों को हाथों में उठाकर बोला-'आज तो दोनों को क्षमा करता हूं, फिर कभी ऐसी मूर्खता की तो दोनों का सिर फोड़ दूंगा।' यह कहकर वह दोनों को फूल की गेंद की तरह उठाकर कमरे से बाहर आया और दोनों को घुमाकर फेंक दिया। भाग्यवश दोनों चारे के एक विशाल ढेर पर जा गिरे और मरने से बच गए। किसान बोला-'विक्रम! देख लिया न? जैसे घास का पूला फेंका जाता है, वैसे ही हम फेंके गए। किन्तु मेरा एक बन्धु है, जो इससे भी अधिक शक्तिशाली है। जो वह आए तो इस दुष्ट को मजा चखाए।' विक्रम अपनी गर्दन को खुजला रहे थे। वे बोले-'तेरा बंधु कहां रहता है?' __ 'यहीं पास में रहता है। एक वर्ष से वह परदेश गया था, आज ही वह लौटा है। तुम यहीं खड़े रहो, मैं अभी उसे बुलाकर लाता हूं।' किसान ने कहा। विक्रम ने स्वीकृति दी। किसान बाहर निकला। विक्रम ने मन-ही-मन सोचा-अरे! मैं अपने भुजबल का अहंकार करता था, किन्तु यहां के दृश्यों को देखकर मेरा गर्व चूर-चूर हो गया। भुजबली और पराक्रमी कोई एक नहीं होता। कमलारानी ने मुझे सच कहा था कि बल और पराक्रम का अहं करना मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है। विक्रम ऐसा ही सोच रहे थे कि वह किसान अपने बन्धु को लेकर वहां आ पहुंचा। विक्रम ने देखा, वह अत्यन्त हृष्ट-पुष्ट और शक्तिशाली प्रतीत हो रहा था। २०६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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