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'तुम मुझे बलशाली मानते हो, किन्तु मुझे अपनी हथेली से पीस देने वाला मेरा एक शत्रु है। वह मेरी आंखों के सामने मेरी पत्नी के साथ भोग भोगता है, पर मैं कुछ भी नहीं कर सकता । मेरी शक्ति वहां पंगु बन जाती है।'
'यह तुम क्या कह रहे हो ?'
'भाई विक्रम ! मैं सच बता रहा हूं । यदि तुम्हें इस बात की परीक्षा करनी हो तो तुम मेरे साथ मेरे घर चलो। मेरा गांव इसी ढलान में है।' कहकर किसान ने उस ढलान की ओर अपना हाथ लंबा किया।
विक्रम को इस आश्चर्य ने जकड़ लिया था । वे किसान के पीछे-पीछे अश्व को लेकर चल पड़े । जब वे ढलान को पार कर गांव में पहुंचे, तब अंधकार हो चुका था । किसान ने विक्रम को अपने घर की छोटी कोठरी में बिठाया और स्वयं अपनी पत्नी के पास गया ।
कुछ समय पश्चात् वह किसान रोटी और दूध लेकर विक्रम के पास आया । दोनों ने साथ बैठकर ब्यालू किया। फिर विक्रम ने पूछा- 'वह व्यक्ति कब आता है ?'
'बस अब आने ही वाला है। उसके आने से पहले ही हमें मेरी पत्नी के कमरे में छिप जाना चाहिए ।' किसान बोला ।
विक्रम तैयार हो गए। किसान की पत्नी अभी रसोईघर में ही बैठी थी और अपने 'यार' के लिए तिलपपड़ी बना रही थी । विक्रम और किसान - दोनों उस कमरे के अंधेरे कोने में छिपकर बैठ गए। विक्रम ने धीरे से पूछा - 'तुम्हारी पत्नी क्या कर रही है ?'
'वह मिठाई बना रही है अपने यार के लिए।'
'तो तुम अपनी घरवाली को भी कुछ नहीं कह सकते ?'
'यही तो कठिनाई है । यदि मैं कुछ भी बोलूं, तो वह रांड उससे बात कह दे और फिर वह मेरी हड्डी-पसली ढीली कर दे। इसलिए सब कुछ सहन कर चुपचाप बैठा रहता हूं। जिस घर का सदस्य असमझ हो, उसका क्या किया जाए ?'
लगभग एक घटिका के बाद किसी के पदचापों की तीव्र आवाज कानों में पड़ी। किसान ने धीरे से कहा- 'वह आ गया.... ।' इतने में ही एक लंबे-चौड़े और शक्तिशाली पुरुष ने कमरे में पैर रखे और कहा- 'अरे! अभी तक दीया नहीं जलाया ?'
कोमल-मधुर आवाज आयी - 'तुम पलंग पर बैठो। मैं अभी आ रही हूं।' वह व्यक्ति पलंग पर बैठ गया। कुछ ही क्षणों के पश्चात् किसान की पत्नी एक हाथ में दीपक और दूसरे हाथ में मिठाई का थाल लेकर आयी। उसने दीपक
वीर विक्रमादित्य २०५