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खेत में एक हृष्ट-पुष्ट किसान हल जोत रहा था। हल जोतना कोई आश्चर्यकारक नहीं है, किन्तु विक्रम ने वहां अकल्पित आश्चर्य देखा। हल में दो बैल जुते हुए नहीं थे, किन्तु एक ओर केसरी सिंह और दूसरी ओर भयंकर बाघ जुता हुआ था। इससे भी आश्चर्यकारी बात यह थी कि दोनों हिंसक प्राणियों के बंधी हुई रस्सी, सूत या रेशम की नहीं थी, किन्तु भयंकर विषधरों से बनी हुई थी। ऐसा दृश्य विक्रम ने कभी नहीं देखा था। एक-एक ग्रामीण इतना पराक्रमी है कि वह सिंह और बाघ जैसे प्राणियों पर नियंत्रण रख सके? अरे, इस किसान का भुजबल कितना प्रचण्ड है ? क्या मेरे राज्य में ऐसे शक्तिशाली व्यक्ति छिपे पड़े हैं?
- किसान अपने कार्य में तल्लीन था और विक्रम अपलक इस दृश्य को देख रहा था। संध्या का समय होने वाला था। किसान ने अपने हल को रोककर अस्ताचल की ओर देखा। फिर उसने रस्सी के रूप में बांधे हुए विषधरों को मुक्त किया तथा सिंह और बाघ को भी छोड़ दिया। वहां से बंधन-मुक्त होते ही सिंह
और बाघ अपनी पूंछ दबाकर वन की ओर भाग गए और सर्प सर्-सर् कर चले गए। फिर किसान अपने हल को कंधे पर रख चलने लगा। इतने में ही विक्रम ने वृक्ष की ओट से बाहर आकर किसान से पूछा-'अरे भाई! थोड़ा ठहरो। मेरी शंका का समाधान तो करते जाओ।'
किसान रुक गया। विक्रम ने पूछा- 'क्या सिंह और बाघ तुम्हारे पालतू पशु हैं ?'
'नहीं रे भाई! मैं तो रोज जंगल में जाता हूं और इन्हें उठाकर ले आता हूं और सांझ को छोड़ देता हूं। इनको पालतू बनाकर रखू कहां?'
विक्रम ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा- 'शाबाश! तेरी शक्ति को देखकर मैं अवाक् रह गया। निश्चित ही तेरा भुजबल अपार है।'
किसान ने हंसकर कहा- 'भाई! तुम अपना परिचय तो दो।'
विक्रम बोले-'भाई! मैं इस देश का राजा विक्रम हूं। किन्तु आज तुम्हारा पराक्रम देखकर मुझे यह निश्चय हो गया है कि संसार में सेर को सवा सेर मिल जाता है।'
विक्रम की बात सुनकर किसान खिलखिलाकर हंस पड़ा। वह बोला'अहो! तुम ही हमारे राजा हो। आज तो मेरे सोने का सूरज उगा है। किन्तु राजन्! मेरी दशा दूसरी ही है।'
'क्यों?'
२०४ वीर विक्रमादित्य