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________________ के साथ इसी कूप के नीचे बने हुए एक महल में निवास कर रहा है। उसने जितने मनुष्यों को पकड़ा है, वे सब जीवित हैं, किन्तु इस अमावस्या की मध्यरात्रि में वह सबको भक्ष्य लेगा। प्रेत-जाति के एक वैद्य ने उसके रोग-निवारण का ऐसा उपाय बतलाया है। अमावस में अभी दस दिन शेष हैं । इसी बीच यदि बर्बरक रोगमुक्त हो जाएगा तो सभी मनुष्यों को बंधनमुक्त कर देगा, अन्यथा वह सभी को मार डालेगा।' विक्रम बोले-'मित्र! बर्बरक को रोगमुक्त करने का उपाय क्या है?' 'महाराज, बर्बरक प्रेत-सम्राट् है। इसलिए मेरी शक्ति इसके समक्ष कार्यकर नहीं होगी। आप साहस करें तो एक उपाय बताऊं।' 'बोलो, मैं तैयार हूं।' वैताल ने कहा- 'बर्बरक के महलों के द्वारपाल की पत्नी लम्बे समय से रोगग्रस्त है। मैं आपको एक औषधि देता हूं। आप उस औषधि का प्रयोग सबसे पहले द्वारपाल की पत्नी पर करें। औषधि के प्रभाव से वह तत्काल स्वस्थ हो जाएगी और फिर आप पर प्रसन्न होकर द्वारपाल आपको बर्बरक के पास ले जाएगा।' विक्रम ने पूछा- 'किन्तु बर्बरक के रोग की चिकित्सा क्या है ?' अग्निवैताल ने बर्बरक के रोग की समूची बात विक्रम को बताई और उससे मुक्त करने का उपाय भी सुझाया। फिर वह बोला- 'महाराज! जब बर्बरक निरोग हो जाएगा, तब वह आपका दास बन जाएगा।' यह कहकर वैताल अदृश्य हो गया। अब तक शांत भाव से बैठी कमला बोल उठी-'नाथ! आपके बिना ऐसा साहस कोई नहीं कर सकेगा।' और उसी दिन संध्या के पश्चात् विक्रम ने एक वैद्य का रूप धारण किया और अग्निवैताल द्वारा प्रदत्त औषधि लेकर चामत्कारिक कूप की ओर प्रस्थित हुए। विक्रम अश्व से नीचे उतरे और प्रशिक्षित अश्व की पीठ थपथपाते हुए बोले'अब तू जा।' __ अश्व ने विक्रम का मनोभाव जान लिया। वह तत्काल नगरी की ओर चला गया। ___ मन में इष्टदेव पार्श्वनाथ का स्मरण कर 'ॐ ह्रीं नम:' मंत्र का इक्कीस बार जाप कर विक्रम कूप के पास गये। कूप की अदृश्य शक्ति से वे कूप के भीतर खींच लिये गए। अन्दर जाते ही एक प्रेत ने उन्हें पकड़ लिया। __विक्रम बोले- 'मित्र! मुझे पकड़ने में कोई लाभ नहीं है। मैं तुम्हारी पत्नी को रोगमुक्त करने आया हूं। मैं एक समर्थ वैद्य हूं।' 'अरे! तुम वैद्य हो! कहां रहते हो?' द्वारपाल प्रेत ने पूछा। १७२ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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