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नगर की दक्षिण दिशा में एक कोस की दूरी पर एक कूप था। वहां चमत्कार होता है', यह बात नगर में फैली हुई थी। चमत्कार की बात राजा विक्रम के कानों तक भी पहुंची।
___ इस कूप में क्या था या है, कोई नहीं बता सका। किन्तु एक महीने के भीतर पांच पथिक उस कूप के भोग बन चुके थे। आश्चर्य की बात तो यह थी कि कूप में गिरे पांचों व्यक्तियों के शव प्राप्त नहीं हो सके थे। शवों की पूरी खोज की गई, पर प्रयत्न व्यर्थ ही हुआ। कोतवाल ने शवों की खोज में दो व्यक्तियों को कूप में उतारा, पर वे भी भीतर गायब हो गए। सभी आश्चर्यचकित थे कि कूप में सात-सात आदमी कहां अदृश्य हो गए?
वीर विक्रम ने जब यह वृत्तान्त सुना तो वे विचारमग्न हो गए। वे मंत्रियों और अन्यान्य राज्याधिकारियों को साथ लेकर कूप पर गए । एक सैनिक की कमर में रस्सी बांधकर उसे नीचे उतारा। उस प्रयत्न का परिणाम जानने के लिए सभी उत्सुक नयनथे। किन्तु जब सैनिक के बदले कूप से केवल रस्सी ही बार निकली, तब सब घबरा गए। दो-चार दिन बाद उस रास्ते से आना-जाना बन्द हो गया।
यह क्या रहस्य है, इसको कैसे जाना जाए-ये प्रश्न विक्रम के लिए मस्तकशूल बन गये।
३५. प्रेत-सम्राट्
यह क्या रहस्य है, जो व्यक्ति उस कूप के पास जाता है, वह उसी कूप में समा जाता है। न वह जीवित बाहर निकल पाता है और न उसका मृत शरीर ही बाहर आता है। यह चिन्ता का विषय बना हुआ था। विक्रम ने सोचा और इस कूप को भर देने का निर्णय लिया। हजारों लोगों के प्रयत्न से एक ही दिन में उस कूप को भर दिया गया। विक्रम ने सोचा, अब कूप ही नहीं रहा तो फिर उसमें गिरकर मरने का भय भी कैसा? सभी लोग निश्चिंत होकर रहने लगे। पर दूसरे ही दिन राजसभा में एक किसान ने शिकायत की- 'महाराज ! कृपा करें। मेरी जवान पुत्री उस कूप की भक्ष्य बन गई है।'
किसान के ये शब्द सुनकर सभा में उपस्थित सभी सदस्य आश्चर्यचकित रह गए। महामंत्री ने खड़े होकर कहा- 'भाई! तुम उस कूप की बात कितने दिनों पूर्व की कह रहे हो?'
किसान बोला-'आज प्रात:काल की बात कह रहा हूं। मैं और मेरी पुत्री उसी रास्ते से आ रहे थे। हम हाथ-मुंह धोने के लिए कूप के किनारे पर गए और अचानक मेरी पुत्री कूप में गिर पड़ी।'
१७० वीर विक्रमादित्य