________________
सुकुमारी पति के कोई समाचार न पाकर अत्यन्त दु:खी और व्यथित थी। उसने अपनी मनोव्यथा मां के पास रखी। मां ने कहा- 'बेटी यह चिन्ता का विषय अवश्य है, किन्तु धैर्य गंवाने का अवसर नहीं है। विजय एक कलाकार हैं। वेस्वभाव से नम्र हैं, परन्तु कलाकार धुनी होता है। वह जाता कहीं है और निकलता कहीं है। संभव है, तेरे स्वामी किसी अन्य देश में चले गए हों?'
सुकुमारी बोली- 'मां! कलाकार धुनी होता है, पर वह अपने प्राणों को कैसे भूल सकता है ? पिताश्री ने उनकी खोज करने दो दूत बंगदेश की ओर भेजे। वे भी खाली हाथ लौट आए हैं। मेरे स्वामी का कोई अता-पता नहीं मिला। मुझे संशय हो रहा है कि अब वे कभी लौटेंगे या नहीं?
महाराजा शालिवाहन भी उस समय वहां आ गए। उन्होंने सारी बात सुनी। सुकुमारी को आश्वासन दिया।
सुकुमारी बोली-'सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि हम कलाकार विजयसिंह के निवास-स्थान और परिवार को नहीं जानते।'
विजयसिंह-रूपी विक्रम ने जिस दिन यहां से प्रस्थान किया था, तब उन्होंने सुकुमारी को एक छोटी पेटिका दी थी। उस पेटिका में उनका परिचय था, किन्तु यह वृत्तान्त सुकुमारी की स्मृति में ओझल हो गया था। उसे इस विषय की बात कुछ भी याद नहीं रही।
प्रतिष्ठानपुर में जब प्रियतमा सुकुमारी अपने प्रियतम के आगमन की बाट देख रही थी, तब प्रियतम विक्रम दो-दो सुन्दरियों के सहवास में मौज-मस्ती मना रहे थे।
मनुष्य जब प्रेम और मोह में अंधा बन जाता है, तब वह बहुत कुछ भूल जाता है। विक्रम जानते थे कि उन्होंने सुकुमारी को सगर्भावस्था में छोड़ा है। सुकुमारी के स्वप्न के आधार पर उन्होंने यह भी निश्चय किया था कि सुकुमारी एक तेजस्वी पुत्र का प्रसव करेगी। वह पुत्र और कोई नहीं, अवंती के सिंहासन का उत्तराधिकारी होगा। किन्तु विक्रम अपनी प्रियतमा सुकमारी को बिल्कुल भूल गए थे।
एक दिन अग्निवैताल अपनी पत्नी को साथ लेकर विक्रमादित्य से मिलने आया और उस समय भी विक्रम को सुकुमारी की याद नहीं आयी। वैताल केवल एक दिन रुका और फिर वहां से पत्नी के साथ विविध प्रदेशों की यात्रा के लिए निकल पड़ा।
खर्परक जैसे भयंकर चोर को नष्ट करने के पश्चात् आठ महीने सुखशान्तिपूर्वक व्यतीत हुए। किन्तु नौवें महीने में एक नयी उपाधि आ गई।
वीर विक्रमादित्य १६६