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'क्यों?' 'हमारे प्रदेश में मनुष्य प्रवेश नहीं कर सकता।' 'ओह! तब तो....।' 'आपके आशीर्वाद से ही मुझे सन्तोष मानना होगा।' वैताल बोला। उसके पश्चात् पांचों सुन्दरियों के साथ विक्रम गुफा से बाहर आये।
विक्रम और पांचों स्त्रियों को राजभवन में पहुंचाकर अग्निवैताल अदृश्य हो गया।
'महाराजा विक्रमादित्य खर्परक चोर को मारकर नगरी की चारों कन्याओं को लेकर आ गए हैं' - यह बात नगर में चारों ओर फैल गई।
दिन का पहला प्रहर पूरा हो, उससे पूर्व ही हजारों नगर-जन महाराजा को धन्यवाद देने आए। नगरी की चारों कन्याओं को उनके मां-बाप को सौंप दिया गया और सूर्यास्त से पूर्व खर्परक ने जिन-जिनका माल लूटा था, वह सारा सामान उन-उन अधिकारी व्यक्तियों को दे दिया गया।
रानी कमलावती ने छोटी बहन कलावती को गले लगाकर सारी बात पूछी।
महाराजा विक्रमादित्य ने भी रात्रि के समय अपनी दोनों प्रियतमाओं को खर्परक के साथ हुए संग्राम की बात बताई।
नगरी में आनन्द छा गया।
'वीर विक्रम अपने जीवन को खतरे में डालकर भी प्रजा की रक्षा करते हैं' यह बात सारे राज्य में फैल गई।
कोई भी बात जब एक गांव से दूसरे गांव, एक देश से दूसरे देश में पहुंचती है, तब वह और अधिक विस्तृत होती जाती है। वीर विक्रम के पराक्रम की यह घटना अन्यान्य कल्पनाओं से विस्तृत होती हुई सारे राज्य में गूंजने लगी।
दिन बीतने लगे। बात-ही-बात में छह महीने बीत गए। वीर विक्रम अपने राजकार्य तथा दोनों प्रियाओं में इतने तल्लीन हो गए कि महाराजा शालिवाहन की एकाकी पुत्री-प्रियतमा सुकुमारी को भूल गए।
प्रवृत्ति-बहुलता आदमी को अतीत से दूर खींच लाती है।
वीर विक्रम ने सुकुमारी से छह मास के भीतर-भीतर लौट आने का वादा किया था, पर आज वे इसे पूर्ण विस्मृत कर चुके थे।
प्रतिष्ठानपुर में देवी सुकुमारी पिता के राजभवन में रह रही थी। उसका स्वास्थ्य ठीक था। अब प्रसूति के केवल दो-चार दिन शेष हैं, ऐसा लग रहा था। किन्तु उसका मन अत्यन्त चिन्ताग्रस्तथा। स्वयं के कलाकार स्वामी अभी प्रवास से लौटे नहीं थे और कोई संदेश भी नहीं मिला था। उसका हृदय टूट रहा था। वह
वीर विक्रमादित्य १६७