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________________ 'कौन है तू?' विक्रम ने खर्परक की ओर देखा । खर्परक का रूप परिवर्तित था। वह जब नगरी में गया था, तब वह कृत्रिम रूप से गया था, किन्तु गुफागृह में पहुंचते ही उसने अपना मूल रूप बना लिया था-देवी चंडिका का ऐसा वरदान था। विक्रम बोला- 'अरे! तुम कौन हो?' मेरी मजदूरी दिए बिना, मुझे बाहर बिठाकर एक व्यक्ति अन्दर आया था, वह कहां गया है?' 'अरे! मैं वही हूं....किन्तु तू मेरी आज्ञा के बिना अन्दर कैसे आ गया?' _ 'तुम तो कोई चोर प्रतीत हो रहे हो। मुझे साथ लेकर आया था, वह तो बहुत सज्जन मनुष्य था।' 'अरे ओ भिखारी! वाचाल मत बन, अन्यथा....।' बीच में ही विक्रम बोल उठा- 'मैं क्षत्रिय हूं। मेरी मजदूरी दे दे, अन्यथा जो करूंगा, वह भुगतना पड़ेगा।' चारों कन्याएं इस अनजान दरिद्र मनुष्य की हिम्मत देखकर अवाक् रह गईं। खर्परक रोष से भर गया। उसने चारों कन्याओं से कहा, 'तुम सब अपने कक्ष में चली जाओ। मेरे गुफागृह में आने वाला कोई जीवित नहीं रह सकता।' कन्याएं भीतर चली गईं। खर्परक ने इस दरिद्र-वेशधारी विक्रम की ओर देखकर कहा, 'तेरी मजदूरी ! ठहर, अभी तेरे रक्त से चुकाता हूं।' विक्रम ने मन-ही-मन सोचा, देवी के वरदान से शक्तिशाली बना हुआ यह खर्परक यदि सावचेत हो गया तो सम्भव है, यहां से अदृश्य हो जाए। आज अच्छा अवसर मिला है, इस अवसर को गंवाना मूर्खता होगी, किन्तु पहले इसके क्रोध को प्रचण्ड करना चाहिए। क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। क्रोध बुद्धि, स्मृति और विवेक को नष्ट करता है। विक्रम बोला- 'अरे ! तुम तो वर्णसंकर लगते हो, अन्यथा एक क्षत्रिय के समक्ष ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें नहीं करते। मैं गरीब हूं, छोटा हूं, किन्तु हूं एक क्षत्रिय । मुझे मारकर रक्त बहाने वाले को पहले अपना रक्त बहाना होगा, समझे? मुझे मेरी मजदूरी दे दो।' ऐसा कहते-कहते विक्रम खिसककर मद्यभांड के पास पहुंच गया। . 'मुझे प्रतीत होता है कि तेरी मौत तुझे यहां खींच लायी है ? तू मुझे नहीं पहचानता, इसीलिए इस प्रकार बोल रहा है।' खर्परक ने क्रोध में कहा। ___ 'मैं तुम्हें पहचानता हूं। तुम एक अपहर्ता हो, पागल चोर हो। जब सब निद्राधीन हो जाते हैं, तब तुम चोरी करते हो। जब कन्याएं सोयी रहती हैं, तब तुम १६२ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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