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'यदि तुम हमें भूखे मार डालते तो अच्छा होता। इस कारावास सेतो मरना अच्छा है, जिससे इस नारकीय जीवन से छुटकारा तो हो जाता।'
खर्परक हंसते हुए बोला, 'अब अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। तुम सबने मेरी शक्ति का अन्दाजा तो लगा ही लिया होगा? अवंतीनाथ की नई रानी को भी तुम्हारे साथ ही रखा है। अब दो सुन्दरियां और लानी हैं। एक-दो सप्ताह के भीतर मैं दो रूपवती कन्याओं को ले आऊंगा, फिर अवंतीनाथ की हत्या कर मालवदेश का अधिपति बन जाऊंगा और सातों रूपसियों के साथ विवाह कर स्वर्ग-सुख का अनुभव करूंगा।'
चारों में से एक कन्या बोली, 'ओह! गुफागृह में चोरी-छिपे रहने वाले एक चोर को सिंहासन चाहिए? खर्परक! तुम्हारा यह स्वप्न कभी पूरा नहीं हो पाएगा। तुम हमें मुक्त कर दो। तुमने रानी कलावती का अपहरण किया है। तुम नहीं जानते हमारे प्रतापी महाराजा विक्रम के पराक्रम को। वे तुम्हें पाताल में भी खोज लेंगे और टुकड़े-टुकड़े कर तुम्हें यमलोक पहुंचा देंगे।'
खर्परक जोर से हंस पड़ा। वह बोला, 'अवंती का प्रतापी राजा! उसकी भुजाओं में कितना बल है, मैंने जान लिया। उसकी सुन्दर रानी को मैं उठा लाया, यह क्या कम बात है ? अब चुपचाप अन्दर चली जाओ।'
तीसरी कन्या बोली- 'खर्परक! हम तुम्हारे साथ लड़ना नहीं चाहतीं, तुम्हें जो करना है, वह करो, किन्तु हमें छोड़ दो। रानी कलावती ने यहां आने के पश्चात् अभी तक अन्न-जल ग्रहण नहीं किया है। हम भी कल प्रात:काल से अन्न-जल का त्याग करेंगी।'
'अरे! तुम सब एक सप्ताह तक धैर्य रखो। तुम सबने देखा है कि मेरे पास कितनी सम्पत्ति है। जो सम्पत्ति और वैभव विक्रम के पास नहीं है, वह मेरे पास है। मैं तुम सबको सुखी बना दूंगा।'
'खर्परक ! तुम्हारे पास जो धन है, वह तुम्हारे पुण्य का फल नहीं है। यह चुराया हुआ धन है। इस धन से सुख कहां मिलेगा? यदि तुम हमें मुक्त नहीं करोगे, तो हम पांचों कल से अन्न-जल का त्याग कर देंगी।'
___ 'कन्याओं ! मैंने आज तक तुम्हारे साथ किसी प्रकार का अभद्र व्यवहार नहीं किया, क्योंकि कुछ ही समय के बाद मैं सबके साथ विधिवत् विवाह करने वाला हूं। यदि तुम सब कल से अन्न-जल त्याग करोगी तो मैं अपनी मर्यादा को भंग कर अपनी काम-वासना को शांत करूंगा।'
___ चारों कन्याएं भय से कांपने लगी और उसी समय दरिद्र वेशधारी विक्रम आगे बढ़कर बोला, 'महाराज की जय हो।'
वीर विक्रमादित्य १६१