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________________ समाधान पाकर खिसकने लगे। भीड़ कम हो गई। लोगों ने ज्योतिषी की भूरि-भूरि सराहना की। विक्रमादित्य को आश्चर्य हुआ कि यह व्यक्ति बिना गणित किए किस प्रकार प्रश्नों के उत्तर देता होगा? क्या यह आकृति विज्ञान का ज्ञाता है ? यह न किसी की हस्तरेखा देखता है, न जन्मकुण्डली देखता है, केवल दो-चार क्षणों तक आकृति को देखकर प्रश्न का उत्तर देता है- ऐसा मैंने आज तक नहीं देखा, नहीं सुना। सूर्यास्त हो जाने पर जलपान नहीं करना है, यह सोचकर विक्रमादित्य नगरी के द्वार की ओर चल पड़े। ज्योतिषी भी अपना आसन कंधे पर रखकर विक्रमादित्य के पीछे जल्दीजल्दी पैर बढ़ाता हुआ चल पड़ा। __ अवधूत वेशधारी विक्रमादित्य नगर के दरवाजे से बाहर निकले, इतने में ही ज्योतिषी के शब्द सुनाई पड़े-'महाराज! कृपा कर कुछ ठहरें।' विक्रमादित्य ने मुड़कर देखा और ज्योतिषी को आते हुए देखकर वहीं रुक गए। ज्योतिषी ने निकट आकर कहा- 'महात्मन्! आपको जाते हुए देखकर मैं दौड़ता हुआ आया हूं।' _ 'मैं तो आपको नहीं जानता।' 'नहीं महात्मन् ! मैं तो आकृति को देखकर आया। आप कोई राजयोगी हैं, कृपावतार! आपका आसन कहां है?' 'रमता-राम के लिए कैसा आसन? आज ही आया हूं। यहां रात भर विश्राम कर चला जाऊंगा।' 'तो आप मेरी झोंपड़ी पर पधारें-मैं आपका स्वागत कर पुण्यशाली बनूंगा।' 'नहीं भाई! मैं गृहस्थों के यहां नहीं जाता।' 'मैं भी फक्कड़ हूं-आपकी ही भांति देशाटन कर रहा हूं।' "तो चलो! सूर्यास्त के पश्चात् मैं जलपान ग्रहण नहीं करूंगा।' विक्रम ने कहा। तत्काल दोनों आगे बढ़ गए। दरवाजे के बाहर निकट में ही ज्योतिषी का निवास था। रहने के लिए किसी का एक छोटा-सा मकान मिल गया था। गत दस दिनों से वह यहीं रह रहा था। पांच दिनों के बाद वह और किसी नगर की ओर प्रस्थान करने वाला था। ज्योतिषी के मकान पर दोनों आए। ज्योतिषी ने अवधूत को कुछ मिठाई दी, दूध पिलाया और जलपान कराया। सूर्यास्त हो गया। वीर विक्रमादित्य ६
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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