________________
रह गए।
दोनों चौंके - दोनों ने अंधकूप में झांककर देखा । देखते ही दोनों स्तंभित
1
अजगर से भी विशाल एक भयंकर नाग कुएं में था। उसके मुंह में देवकन्या जैसी एक अति सुन्दर कमनीय कन्या फंसी हुई थी ।
यह क्या हो सकता है ? इस प्रकार एक मानव कन्या नाग के मुंह में फंस नहीं सकती । भट्टमात्र आठ-दस कदम पीछे रह गया था ।
विक्रमादित्य ने तत्काल उस आवाज के उत्तर में कहा- 'मैं अभी आ रहा हूं। मेरी तलवार तुम्हारी काया के टुकड़े-टुकड़े कर देगी ।'
इतना कहकर विक्रम ने अपना मुकुट उतारकर महामंत्री को सौंप दिया। कुएं में से एक भयंकर अट्टहास गूंज उठा।
३०. राजलक्ष्मी का अपहरण
अट्टहास इतना भयंकर होता है कि वह मनुष्य की हड्डी - पसलियां ढीली कर डालता है।
कूप से अद्भुत अट्टहास भट्टमात्र के लिए असह्य था । उसने तत्काल विक्रम का हाथ पकड़ते हुए कहा- 'महाराज ! आप कूप में न कूदें - भीतर भयंकर कालसर्प बैठा है । '
विक्रम ने मुस्कराते हुए कहा - 'मित्र !' स्वप्न का भावी फल तो तुमने ही बताया था-मनुष्य एक जन्म में एक ही बार मरता है। मैं मानता हूं कि यह सर्प नहीं, किन्तु अवंती को पीड़ित करने वाला मांत्रिक चोर है। वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, आज मेरी तलवार के एक ही वार से मृत्युधाम पहुंच जाएगा और उसकी सारी आशाएं नष्ट हो जाएंगी। तुम चिन्ता मत करो - शान्ति से देखते रहो ।'
भट्टमात्र विक्रम की तेजस्वी आंखों के सामने देखता रहा ।
विक्रम ने अपनी तीखी धार वाली तलवार को म्यान से मुक्त किया - मस्तक का रक्षण महामंत्री के हाथ में सौंपकर वह कूप के पास पहुंचा और उसकी मेड़ पर खड़ा होकर प्रचण्ड स्वर में बोला- 'आज मैं तुझे नष्ट कर दूंगा - तू सावधान हो जा ।'
इतना कहकर मौत की तनिक भी परवाह किए बिना, विक्रम ने उस अंधकूप में छलांग लगा दी ।
किन्तु यह क्या ?
वीर विक्रमादित्य १४७