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________________ विक्रम अधर में ही अटक गए। नाग के बदले वहां एक सुन्दर पुरुष खड़ा था। उसके पास वह सुन्दरी खड़ी थी। सुन्दरी का रूप-लावण्य अपूर्व था। उसके अलंकारों की प्रभा से समूचा कूप प्रकाशित हो रहा था। विक्रम अधर में थे, फिर भी उन्होंने अपनी तलवार उत्तेजित की। नाग के रूप का त्याग कर पुरुष बना हुआ वह बोल उठा- 'ओ वीर पुरुष! तुम शांत हो। मैं चोर नहीं, किन्तु एक विद्याधर हूं। तुम्हारी परीक्षा करने के लिए ही मैंने स्वप्न की रचना की थी।' तत्काल विक्रम ने तलवार रोक दी। विद्याधर देव ने उन्हें नीचे उतारा। कुएं की कुछ दूरी पर भट्टमात्र आंखें बन्द कर खड़ा था। वह मानता था कि विक्रमादित्य आपत्ति में फंस जाएंगे। भयंकर नाग क्या करेगा? किन्तु अब क्या हो? संसार में बालहठ, स्त्रीहठ, राजहठ और योगीहठ-इनको टाला नहीं जा सकता। विक्रमादित्य देव के सामने खड़े रहे, तब देव ने कहा- 'राजन् ! वैताढ्य पर्वत पर श्रीपुर नाम की नगरी में रहता हूं। मेरा नाम है धीर । यह मेरी रूपवती और गुणवती कन्या कलावती है। मैं अब संसार त्यागकर मुनि बनना चाहता हूं। मैं अपनी इस एकाकी पुत्री को किसी योग्य वर के हाथों में सौंपने की दृष्टि से, उसकी खोज में यहां आया हूं। वैताढ्य पर्वत पर अनेक विद्याधर परिवार हैं, किन्तु मानवजाति में जो गुण होते हैं, जो पराक्रम होता है, वह विद्याधरों में नहीं होता। दूसरी बात है कि मेरी यह कन्या भी किसी वीर पुरुष की सहधर्मिणी बनना चाहती है। आज मैं आपको पाकर अत्यन्त प्रसन्न हूं। आप मेरी कन्या को स्वीकार करें।' विक्रम यह सुनकर अवाक रह गए। उन्होंने कलावती की ओर देखा। वह नीची दृष्टि किए खड़ी थी। उसका रूप और लावण्य आंखों को तृप्त करने वाला था। अन्त:करण में ऊर्मियों से भरे काव्य का जागरण हो, ऐसा उसका सुकुमार वदन था। विद्याधर ने विनयपूर्वक कहा-'राजन् ! मेरी प्रार्थना आप स्वीकार करें। वर की खोज करते-करते मैं थक चुका हूं। आप मुझे निराश न करें।' विक्रम ने हाथ जोड़कर कहा-'आपकी भावना का मैं सत्कार करता हूं।' विद्याधर अत्यन्त आनन्दित हुआ। कलावती ने तत्काल विक्रम के चरणों में मस्तक नवाया। विद्याधर ने अपनी इच्छाशक्ति का प्रयोग किया और तीनों तत्काल बाहर आ गए। १४८ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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