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'जैसी तुम्हारी भावना....किन्तु यदि कभी मुझे आवश्यकता हुई तो?'
'आप मुझे यदि एक माह तक याद नहीं करेंगे तो मेरा कार्य सम्पन्न हो जाएगा। फिर भी जब आप याद करेंगे तब मैं कुछ समय के लिए उपस्थित हो जाऊंगा।' वैताल ने कहा।
'कोई महत्त्व का कार्य होगा, तभी तुम्हें याद करूंगा।' विक्रम बोले।
फिर वैताल अपनी शक्ति के योग से कुछ ही क्षणों में विक्रम और दोनों अश्वों के साथ अवंती नगरी के बाहर एक उद्यान में आ पहुंचा।
वैताल विक्रम की आज्ञा लेकर अदृश्य हो गया।
विक्रमादित्य तत्काल अपने राजभवन की ओर जाने के लिए दोनों अश्वों को लेकर चल पड़े। राजभवन में किसी को कल्पना भी नहीं थी कि आज राजराजेश्वर पधारेंगे।
___ महाराजा को मुख्य द्वार में प्रवेश करते देखकर द्वारपाल स्तंभित रह गया। सबने महाराजा का अभिवादन किया। एक द्वारपाल ने एक अश्व को वहीं थाम लिया और विक्रमादित्य सीधे राजभवन के प्रांगण में पहुंच गए। संध्या बीत चुकी थी। राजभवन दीपमालिकाओं से जगमगा रहा था।
महाराजा को अकस्मात् आते देखकर वहां तैनात रक्षक वर्ग ने अवंतीनाथ का जयनाद किया। दास-दासी चौंककर वातायन से देखने लगे। एक दासी दौड़कर महारानी कमलावती के खण्ड में गई और महाराजा के आगमन की शुभसूचना दी।
कमलावती अभी-अभी स्नान से निवृत्त होकर अपने कक्ष में आयी थी। वह तत्काल उठकर बोली- 'महाराज के साथ कौन है?'
'महाराज अकेले ही हैं ।
कमला ने सोचा-संभव है नववधू तथा उसका साज-सामान पीछे आ रहा होगा। अरे, पर महाराजा ने अपने आने की सूचना क्यों नहीं दी?
__ वह तत्काल खण्ड से बाहर निकली और सोपान श्रेणी की ओर बढ़ी, उससे पूर्व ही महाराजा विक्रमादित्य वहां पहुंच गए।
स्वामी को देखते ही कमला ने भावपूर्वक नमन किया। विक्रम ने पत्नी का हाथ पकड़ते हुए कहा-'कमला! कुशलक्षेम तो है न?' 'आप?' 'मैं पूर्ण स्वस्थ हूं।' कहकर विक्रम पत्नी का हाथ थामे कक्ष की ओर बढ़े।
खण्ड में जाने के पश्चात् विक्रम बोले-'प्रिये ! महाप्रतिहार दिखाई नहीं देते?'
वीर विक्रमादित्य १३६