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________________ 'अभी-अभी वे अपने भवन की ओर गए हैं। किन्तु मेरी बहन कहां है ? क्या रथ पीछे रह गया?' 'नहीं, सुकुमारी वहीं हैं। सारी बात मैं फिर बताऊंगा। पहले मैं स्नान आदि से निवृत्त हो जाऊं।' कमला ने दासी को पुकारा और स्नान आदि की व्यवस्था करने का आदेश दिया। दासी नमन कर चली गई। विक्रम अत्यन्त सादे वेश में थे। कमला के मन में आश्चर्य उभर रहा था। उसने पूछा, 'स्वामिन् ! आप इन कपड़ों में....?' 'हां, मैंने वहां से एक कलाकार के रूप में प्रस्थान किया था। तुम एक काम करो-महाप्रतिहार और महामंत्री को सूचना भेजो। इतने में ही मैं स्नान आदि से निवृत्त हो जाऊंगा। और देखो, आज प्रात:काल मैंने अल्पाहार ही लिया है।' 'तो क्या आप आज प्रात:काल ही वहां से चले थे?' 'हां, वैताल के सहयोग से आज चले और आज ही यहां पहुंच गये।' 'ओह!' कहकर कमला खंड के बाहर आ गई। थोड़े समय पश्चात् कमला पुन: खंड में आकर बोली- 'स्वामिन् ! आप स्नानगृह में पधारें।' विक्रमादित्य तत्काल स्नानगृह में गए। स्नान से निवृत्त होकर जब वे अपने कक्ष में आए, तब वहां भोजन का थाल तैयार रखा था। विक्रमादित्य भोजन करने बैठे। महारानी कमला पंखा झलने लगी। उसने पूछा, 'स्वामीनाथ! ऐसा क्या हुआ कि सुकुमारी को वहीं ठहरना पड़ा?' 'प्रिये! यह बात बहुत लम्बी है। फिर तुम्हें बताऊंगा। किन्तु हमारे राज्य में कोई अव्यवस्था तो नहीं है?' 'नहीं, लोग अत्यन्त आनन्द में हैं। आपके दर्शनों के लिए सारी जनता तरस रही है।' 'तुम्हारा स्वास्थ्य तो ठीक है न?' __'आपकी स्मृति सदा बनी रहती थी। इसके अतिरिक्त कोई चिन्ता नहीं थी।' 'इसीलिए मुझे तुम्हारा वदन कुछ मुरझाया-सा लगता है, प्रिये! क्या करूं, यहां आने के लिए मन बहुत व्याकुल-आतुरथा, किन्तु वहां से निकल पाना अत्यन्त मुश्किल हो रहा था।' 'क्यों? क्या कोई अघटित घटना घट गई थी?' 'नहीं, प्रिये ! मैं अपना वास्तविक परिचय दे ही नहीं पाया।' १४० वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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