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________________ विक्रम हड़बड़ाकर उठे और बोले- 'मित्र! तुम आ गए ? महादेवी कुशल हैं न?' 'अत्यन्त आनन्द में हैं। उन्होंने यह पेटिका दी है। उसमें उनके द्वारा लिखित ताड़पत्र भी है।' विक्रमादित्य ने तत्काल पेटिका खोली। उसमें अलंकारों को देखकर वे चौंक पड़े। उन्होंने अपनी प्रियतमा का पत्र पढ़कर कहा-'मित्र! कमला बहुत बुद्धिमती है।' ___'महाराज! महादेवी आपको बहुत याद करती हैं और वह चाहती हैं कि आप अपनी नई रानी के साथ तत्काल अवंती पधारें, ऐसी उनकी भावना है।' विक्रमादित्य ने पत्र को फाड़ते हुए कहा-'मित्र! पत्र रखना मेरे लिए अनुकूल बात नहीं है। यदि यह पत्र सुकुमारी के हाथ लग जाए तो मेरा परिचय उसे प्राप्त हो जाए।' 'मैं समझ गया, महाराज!' महाराज विक्रमादित्य ने उस पेटिका को सम्हालकर रख लिया और प्रात:कार्य के लिए अपने मित्र के साथ बाहर आ गए। आज राजकुमारी का विवाह होगा-इसी उमंग में समूची नगरी में उत्सव की तैयारी की जा रही थी, मानो अपनी ही पुत्री का विवाह हो, इस प्रकार सारी जनता हर्षोन्मत्त हो रही थी। गत तीन दिनों से महाराजा शालिवाहन ने पूरे नगर को भोजन के लिए निमंत्रित किया था। आज नगरश्रेष्ठी की ओर से भोजन-व्यवस्था थी। आज गोधूलिका के पवित्र समय में राजभवन के विशाल प्रांगण में विजयसिंह रूपी विक्रमादित्य का विवाह राजकन्या के साथ सम्पन्न हुआ। रात को नगरी की नर्तकियां नृत्य करने वाली थीं और महान् गायक जयकेसरी का संगीत भी होने वाला था। २६. प्रथम मिलन की ऊर्मियां रात्रि का पहला प्रहर बीत गया। दूसरे प्रहर के पश्चात् नवदम्पत्ति समारंभ से निवृत्त होकर सुसज्जित रथ में बैठकर नगरी के बाहर वाले भवन की ओर प्रस्थित हुए। ___महाराजा शालिवाहन ने कन्यादान के निमित्त बहुत संपत्ति अर्पित की थी-रत्नालंकार, स्वर्ण, गायें, दास-दासी, रथ, हाथी, घोड़े तथा दो गांव भी दिए थे। वीर विक्रमादित्य १२७
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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