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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
धीरे-धीरे युवा सुदर्शन का सौन्दर्य प्रतिदिन बढ़ने लगा। एक दिन सागरदत्त वैश्य की पुत्री मनोरमा और सुदर्शन ने जिनमन्दिर में पूजन करते समय एक दूसरे को देखा। तभी से दोनों परस्पर प्रेम करने लगे। धीरे-धीरे यह वृत्तान्त सेठ वृषभदास के कानों में भी पड़ा। सेठ वृषभदास सुदर्शन के विषय में चिन्ता कर ही रहे थे कि वहाँ मनोरमा के पिता सेठ सागरदत्त आ पहुँचे। उसने वहाँ आने का अपना प्रयोजन बताया कि वह सुदर्शन के साथ अपनी पुत्री मनोरमा का विवाह करना चाहता है। वृषभदास ने हर्षित मन से विवाह की स्वीकृति दे दी और एक दिन शुभ - बेला में सुदर्शन और मनोरमा का विवाह भी हो गया। (तृतीय सर्ग )
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एक बार उस नगर के उपवन में एक मुनिराज आये । चम्पापुरी के नर-नारी उनके दर्शनों को गये। सेठ वृषभदास भी सपरिवार वहाँ गया और मुनिराज को प्रणाम कर उनसे धर्म का स्वरूप पूँछा । मुनिराज ने आशीर्वाद देकर धर्म और अधर्म का स्वरूप और भेद समझाये जिसे सुनकर सेठ वृषभदास का सारा मोह समाप्त हो गया और वे सब कुछ त्याग कर मुनि बन गये। मुनिराज की वाणी और पिता के आचरण से प्रभावित सुदर्शन ने भी मुनिराज के समक्ष मुनि बनने की इच्छा प्रकट की और निवेदन किया कि मेरे हृदय में अपनी पत्नी मनोरमा के लिये अतिशय प्रीति है, जो मुझे मुनि बनने में बाधक है। अतः आप इससे भी मुक्त होने का उपाय बतायें।
तब मुनिराज ने कहा कि हे सुदर्शन ! तुम दोनों में इस अतिशय प्रेम का कारण तुम दोनों के पूर्वकालीन संस्कार हैं । पहले जन्म में तुम और मनोरमा, भील भीलनी थे। वह भील अगले जन्म में कुत्ता हुआ । एक जिनालय में मरने से वही कुत्ता एक ग्वाले के यहाँ पुत्र रूप में जन्मा | एक बार उस ग्वाले के पुत्र ने एक सरोवर में एक सहस्रदल कमल तोड़ा । उसी समय आकाश- - वाणी हुई कि इस कमल का उपयोग तुम मत करो, तुम इसे ले जाकर किसी महान पुरूष को भेंट कर दो।" यह सुनकर वह बालक कमल भेंट करने इन्हीं सेठ वृषभदास के पास आया । किन्तु इन्होंने वह कमल राजा को समर्पित करना चाहा और वे उस बालक के साथ राजा