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________________ आचार्यश्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा ॐ.. परिच्छेद-3 सुदर्शनोदय की समीक्षा आचार्य ज्ञानसागर विरचित सुदर्शनोदय महाकाव्य में चौबीस कामदेवों में से अन्तिम कामदेव सेठ सुदर्शन के जीवनचरित्र को प्रस्तुत कर एक गृहस्थ के सदाचार, शील एवं एकपत्नीव्रत की अलौकिक महिमा को दर्शाया गया है। सुदर्शन-चरित की परम्परा नयनन्दि ने अपने 'सुदंसणचरिउ' में तथा सकलकीर्ति ने अपने सुदर्शनचरित में उन्हें स्पष्ट रूप से चौबीसवाँ कामदेव और वर्द्धमान तीर्थंकर के समय में होने वाले दश अन्तःकृतकेवलियों में से पाँचवाँ अन्तःकृत्केवली माना है। तत्त्वार्थवार्तिक और धवलाटीका में भी सुदर्शन को अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर का पाँचवाँ अन्तःकृत्केवली माना है।' हरिषेण ने सुभग ग्वाले के द्वारा मुनिराज की शीत-बाधा को अग्नि जलाकर दूर करने का कोई वर्णन नहीं किया। नयनन्दि और सकलकीर्ति ने उसका उल्लेख किया है। रामायण में राम, सीता के वियोग में शोकाकुल दिखाई देते हैं, महाभारत में पाण्डव और कौरवों की कलह एवं मारकाट दिखाई देती है, किन्तु सुदर्शन सेठ के इस चरित में ऐसा एक भी दोष नहीं दिखलाई देता, यह सर्वथा निर्दोष चरित है। इस महाकाव्य में धीरोदात्त नायक की एक ऐसी कौतूहल-जनक कथावस्तु कवि ने चुनी है कि वह इस काव्य के आद्योपान्त पढ़ने की उत्सुकता को शान्त नहीं करती, प्रत्युत उत्तरोत्तर प्रतिसर्ग वह उसे बढ़ाती ही जाती है। प्रसन्न एवं गम्भीर वैदर्भी रीति से प्रवहमान इस सरस्वती सरिता के प्रवाह में सहृदय पाठकों के मनरूपी मीन विलासपूर्वक निवर्तन करने लगते हैं। अनुप्रास, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा और
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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