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________________ आचार्यश्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा सम्राट-पद पाया है। इसलिये वे तुम्हारे पिता के स्नेह-भाजन हैं। अकम्पन तो आपके पिता के भी पूज्य हैं। उनसे युद्ध करना गुरूद्रोह होगा। किन्तु अर्ककीर्ति पर अनवद्यमति के वचनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अर्ककीर्ति के क्रोध का समाचार महाराज अकम्पन ने सुना तो मंत्रियों से सलाह करके एक दूत अर्ककीर्ति के पास भेजा। किन्तु दूत के वचन सुनकर भी अर्ककीर्ति युद्ध से विरत नहीं हुआ। तब अकम्पन अत्यधिक चिन्तित हुए। महाराज अकम्पन को चिन्तित देखकर जयकुमार ने उन्हें धीरज बँधाया और सुलोचना की रक्षा करने के लिये कहा। तत्पश्चात् जयकुमार अर्ककीर्ति से युद्ध के लिये सन्नद्ध हो गये। यह देखकर अकम्पन भी अपने हेमाङगद आदि पुत्रों सहित युद्ध के लिये चल पड़े। श्रीधर, सुकेतु, देवकीर्ति इत्यादि राजाओं ने भी जयकुमार का साथ दिया। जयकमार और अर्ककीर्ति की सेनाएँ युद्ध क्षेत्र में आमने-सामने आकर खड़ी हो गई। अर्ककीर्ति ने चक्रव्यूह की रचना की और जयकुमार ने मकरव्यूह की रचना की। (सप्तम सर्ग) दोनों सेनायें परस्पर युद्ध के लिये ललकारने लगीं। युद्ध का नगाड़ा बजा दिया गया। गजारोही, रथारोही और अश्वारोही परस्पर युद्ध करने लगे। जयकुमार तथा उसके अन्य भाईयों ने एवं हेमाङ्गद आदि काशी-नरेश के पुत्रों ने प्रतिपक्षियों का डटकर सामना किया। इसी बीच रतिप्रभदेव ने आकर जयकुमार को नागपाश और अर्द्धचन्द्र नाम का वाण दिया। जयकुमार ने इस दोनों से अर्ककीर्ति को बाँध लिया। जयकुमार विजयी हुये। काशी-नरेश अकम्पन ने सुलोचना को जयकुमार के विजयी होने की सूचना दी। पश्चात् सबने जिनेन्द्र देव की पूजा की। (अष्टम सर्ग) . जयकुमार के विजयी होने पर राजा अकम्पन ने विचार किया कि अपनी दूसरी पुत्री अक्षमाला का विवाह अर्ककीर्ति से कर दिया जावे। उन्होंने अर्ककीर्ति को कोई दण्ड नहीं दिया और विनम्रता पूर्वक अक्षमाला को स्वीकार करने को कहा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जयकुमार अपराजेय है। उसका कोई अपराध भी नहीं है। जयकुमार ने भी अककीर्ति से प्रीतियुक्त विनम्र वचन कहे। काशी-नरेश के प्रयत्न से जयकुमार और
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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