SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय - 2 आचार्यश्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा ___ परिच्छेद-1 | आचार्यश्री ज्ञानसागर का व्यक्तित्व वीरोदय महाकाव्य जैसे अन्य अनेक साहित्यिक व दार्शनिक ग्रन्थों के प्रणेता पण्डित श्री भूरामल शास्त्री ने वि. सं. 1948 में राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र की गौरवशाली पुण्य-धरा राणोली ग्राम में जन्म लेकर खण्डेलवाल जैन कुलोत्पन्ना छाबड़ा गोत्रिय सेठ सुखदेव जी पितामह के नाम को समुन्नत किया। इनके दो पुत्र चतुर्भुज व डेढ़राज जी हुए। चतुर्भज का विवाह घृतदेवी से हुआ था। काव्यों के सर्गान्त में आचार्यश्री ने अपने माता-पिता कुल का नाम, तो उद्धृत किया है, परन्तु जन्म-तिथि उपलब्ध नहीं हो सकी है। " श्रीमान् श्रेष्ठि-चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलेत्याहवयं। वाणीभूषण-वर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम्।।' सन् 1891 में एक सामान्य परन्तु धार्मिक परिवार में चतुर्भुज जी तथा घृतवरी देवी ने दो जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया। किन्तु जन्म के कुछ ही समय बाद जीवन के लक्षण न मिलने से दोनों शिशुओं को मृत मान लिया गया। लेकिन थोड़ी ही देर में एक शिशु में जीवन्त होने के लक्षण प्राप्त हुये, पर दूसरा बालक मृत्यु को प्राप्त हो गया। जीवित बालक का. नाम भूरामल रखा गया। स्वनामधन्य वे आचार्यश्री 108 ज्ञानसागर के नाम से विख्यात हुये। छगनलाल एवं भूरामल के अतिरिक्त घृतदेवी के , गंगाप्रसाद, गौरीशंकर और देवीदत्त ये तीन पुत्र और हुए।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy