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________________ श्रवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और म. महावीर तथा महावीर चरित-साहित्य........ 33 .. इय सामग्गि सयल जिण णाहहो, पंचमणाणुग्गम गयवाहहो। किं कारणु णउ वाणि पयासई, जीवाइय तच्चाइण भासई ।।पत्र 838 || अर्थात् केवल ज्ञान प्राप्त हो जाने पर निर्ग्रन्थ मुनि आदि के साथ धरातल पर विहार करते हुये छियासठ दिन बीत जाने पर भी जब भगवान की दिव्यध्वनि प्रकट नहीं हुई, तब इन्द्र के मन में चिन्ता हुई कि दिव्यवनि प्रगट नहीं होने का क्या कारण है ? अपभ्रंश के चरित-काव्यों में पौराणिक महापुरूषों, त्रेसठ श्लाका पुरूषों का जीवन-चरित वर्णित है। महापुरूषों का जीवनचरित्र अतिलौकिक तथा धार्मिक-तत्त्वों से अनुरंजित है। साधारणतः चरितकाव्य चार सन्धियों से लेकर बीस-बाईस सन्धियों तक में निबद्ध हैं। पूर्व भवान्तरों तथा अन्य अवान्तर घटनाओं से प्रायः सभी चरितकाव्यों का कलेवर बृद्धिंगत हुआ है फिर भी चरितकाव्य पौराणिक-काव्यों की अपेक्षा आकार में छोटे होते हैं। बारह तेरह सन्धियों से लेकर लगभग सवा सौ सन्धियों तक के पुराणकाव्य उपलब्ध होते हैं।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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