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________________ 308 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन यशस्तिलक चम्पू में कहा गया है कि - अन्तरंग और बहिरंग कारणों के मिलने पर आप्त (देव) शास्त्र और पदार्थों का तीन मूढ़ता रहित, आठ अंग सहित जो श्रद्धान होता है, उसे सम्यग्दर्शन कहते हैं, यह सम्यग्दर्शन प्रशम, संवेग आदि गुणों वाला होता है। आप्तागम-पदार्थानां श्रद्वानं कारणद्वयात् । मूढाद्यपोढमष्टांगं सम्यक्त्वं प्रशमादि भाक् ।। 48।। श्री वसुनन्दि आचार्य ने लिखा है - आप्त, आगम और तत्त्वादिकों का जो शंकादि दोषों से रहित निर्मल श्रद्धान हैं, उसे ही सम्यक्त्व जानना चाहिये) अत्तागम-तच्चाणं जं सद्दहणं सुणिम्मलं होइ। संकाइदो स रहियं तं सम्मत्तं मुणेयव्वं ।। 6 ।। -वसुनन्दी.श्रा.। चरित्रसार में श्रीचामुडंराय जी ने लिखा है कि - भगवान अर्हन्त परमेष्ठी के द्वारा उपदिष्ट निर्ग्रन्थ लक्षण मोक्षमार्ग में श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। श्री शुभचन्द्राचार्य ने कहा है - यज्जीवादिपदार्थानां श्रद्धानं तद्धिदर्शनम्। निसर्गेणाधिगत्या वा तद्भव्यस्यैव जायते ।। 6 ।। -ज्ञानार्णव.पृ. 86। जीवादि पदार्थों का श्रद्धान करना ही नियम से सम्यग्दर्शन है। वह सम्यग्दर्शन निसर्ग से अथवा अधिगम से भव्य जीवों के ही उत्पन्न होता है, अभव्यों के नहीं। श्री नेमिचन्द्राचार्य ने लिखा है - ... जीवादिसद्दहणं सम्मत्तं रूवमप्पणो तं तु। दुरभिणिवेसविमुक्कं णाणं खु होदि सदि जहि ।। 41|| जीवादि पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यक्त्व है, वह सम्यक्त्व आत्मा का स्वरूप है तथा इस सम्यक्त्व के होने पर ज्ञान दुरभिनिवेशों (संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय) से रहित सम्यक् हो जाता है। उपर्युक्त
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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