SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 300 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन वर्णित हो, उसे आगम (शास्त्र) कहते हैं। वीतराग सर्वज्ञ प्रणीतषद्रव्यादि-सम्यक्श्रद्वान ज्ञानव्रताद्यनुष्ठान भेदरत्नत्रय स्वरूपं यत्र प्रतिपाद्यते तदागम-शास्त्रं भण्यते। आप्त-वचन आदि से होने वाले पदार्थ-ज्ञान को आगम कहते हैं। "आप्तवचनादि निबन्धनमर्थज्ञानं आगमः।" आप्त वाक्य के अनुरूप अर्थज्ञान को आगम कहते हैं। आगम (शास्त्र) भक्ति शास्त्र वही है, जो वीतराग द्वारा प्रणीत हो। अतएव आगमवन्तों का ज्ञान न्यूनता से रहित, अधिकता से रहित, विपरीतता से रहित तथा निःसन्दिग्ध वस्तु-तत्त्व की यथार्थता से युक्त होता है। अन्यूनमनति-रिक्तं याथातथ्यं बिना च विपरीतात् । निःसन्देहं वेद यदाहुस्तज्ज्ञान – मागमिनः ।। 42 ।। ___-रत्न.श्रा.अ.2, श्लो.1। जो रागी, द्वेषी और अज्ञानियों के द्वारा प्रणीत ग्रन्थ हैं वे आगमाभास हैं। पूर्व तथा अंगरूप भेदों में विभक्त यह श्रुतशास्त्र देवेन्द्रों और असुरेन्द्रों से पूजित है। अनन्तसुख के पिण्ड रूप मोक्ष-फल से युक्त है। कर्मफल-विनाशक, पुण्य-पवित्र शिवरूप, भद्ररूप, अनन्त अर्थों से युक्त, दिव्य, नित्य, कलिरूप कालुष्यहर्ता, निकाचित (सुव्यवस्थित) अनुत्तर, विमल, सन्देहान्धकार-विनाशक, अनेक गुणों से युक्त आगम की भक्ति करना चाहिये, क्योंकि यह आगम स्वर्ग-सोपान, मोक्षद्वार, सर्वज्ञ-मुखोद्भूत, पूर्वापर विरोध-रहित, विशुद्ध-अक्षय तथा अनादिनिधन है - देवासुरिन्दमहियं अणंत सुहपिंडमोक्ख फलपउरं। कम्ममल पडलदलणं पुण्णपवित्तं सिवं भदं ।। 80 ।। पुव्वंगभेद भिण्णं अणंत-अत्थेहिं संजुदं दिव्वं । णिच्चं कलिकलुसहरं णिकाचिदमणुत्तरं विमलं ।। 81 ।। संदेहतिमिर दलणं बहुविहगुणजुत्तं सग्ग सोवाणं। मोक्खग्गदारभूदं णिम्मल बुद्धि संदोहं ।। 82 ||
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy