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298 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन वीरोदय में देव-भक्ति – का उदाहरण इस प्रकार है -
सन्त सदा समा भान्ति मर्जूमति नुतिप्रिया। अयि त्वयि महावीर! स्फीतां कुरू मर्जू मयि ।। 40।।
-वीरो.सर्ग.22। हे महावीर! सन्त जन यद्यपि आप में सदा समभाव रखते हैं, तथापि अति भक्ति से वे आपको नमस्कार करते हैं; क्योंकि आप वीतराग होते हुए भी विश्व भर के उपकारक हैं, निर्दोष हैं और संकीर्णता से रहित हैं। आपकी कृपा से आपकी यह निर्दोषता मुझे भी प्राप्त हो, ऐसी मुझ पर कृपा करें। शास्त्र का स्वरूप - आचार्य समन्तभद्र ने आगम को निम्नांकित विशेषणों से विशिष्ट बतलाया है।
1. आप्तोपज्ञ – आप्त के द्वारा उपज्ञ-ज्ञात । 2. अनुल्लंघ्य - जिसका उल्लंघन न किया जा सके।
3. अद्दष्टेष्ट विरोधी – प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रमाणों से जिसमें विरोध न आये।
4. तत्त्वोपदेशकृत् - तत्त्वों का उपदेश करने वाला। 5. सार्व - सर्व-जीव-हितंकर । 6. कापथघट्टन – कुमार्ग का निराकरण करने वाला ।
सोमदेव ने लिखा है कि सबसे पहले आप्त (देव) की परीक्षा कर उसमें गन को लगाना चाहिये। जो परीक्षा किये बिना ही देव का आदर करते हैं, वे अन्धे हैं तथा उस देव के कन्धे पर हाथ रख कर सद्गति पाना चाहते हैं। जैसे माता-पिता के शुद्ध होने पर सन्तान शुद्ध होती है वैसे ही देव के शुद्ध होने पर आगम में शुद्धता आती है। शास्त्र' का सामान्य अर्थ है- 'ग्रन्थ' । सर्वज्ञ भगवान के उपदेश के पश्चात् आचार्य-परम्परा से प्राप्त उपदेश को 'आगम' कहते हैं, अर्थात् पूर्वोक्त अर्हन्त देव के मूल सिद्धान्तों के प्रतिपादक ग्रन्थ 'आगम' कहलाते हैं।