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________________ 287 वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन चेष्टाओं से युक्त एक चित्र-सभा बनवायी थी। चित्रसभा बनाने वालों में एक चित्रकार बड़ा बिलक्षण था, जो द्विपद, चतुष्पद और अपद के एक हिस्से को देखकर उसके सम्पूर्ण रूप को चित्रित कर देता था। मूर्तिकला भारत में मूर्तिकला बहुत समय से चली आती है। भारतीय शिल्पकार मूर्ति तराशने के लिए काष्ठ का उपयोग करते थे। उज्जैनी का राजा प्रद्योत राजकुमारी वासवदत्ता को गन्धर्व-विद्या की शिक्षा देना चाहता था। उसने यन्त्र-चालित एक हाथी बनवाया और उसे वत्सदेश के सीमा-प्रान्त पर छोड़ दिया। उधर से उदयन गाता हुआ निकला। उसका गाना सुनकर हाथी वहीं रूक गया। प्रद्योत के आदमी उदयन को पकड़कर राजा के पास ले आये। स्थापत्यकला गृह निर्माण विद्या (वत्थुविज्जा) का प्राचीन भारत में बहुत महत्त्व था। जैन-आगमों में वास्तु-कारों का उल्लेख मिलता है, जो नगर-निर्माण के लिए स्थान की खोज में इधर-उधर भ्रमण किया करते थे। बढ़ई का स्थान समाज में महत्त्वपूर्ण था। उसकी गणना चौदह रत्नों में की जाती थी। गृह-निर्माण करने के पूर्व सबसे पहले भूमि की परीक्षा कर उसे इकसार किया जाता था। और जो भूमि जिसके योग्य होती थी, उसे देने के लिए अक्षर से अंकित मोहर डाली जाती थी। तत्पश्चात् भूमि को खोदकर ईंटों को गरी से कूटकर, उनके ऊपर ईंट चिनकर नींव रखी जाती थी। बाद में पीठिका तैयार हो जाने पर उस पर प्रासाद खड़ा किया जाता था। वीरोदय में कला चित्रण वीरोदय में ग्रन्थकार ने जिनालयों के सौन्दर्य वर्णन, समवशरण चित्रण आदि में चित्रकला, मूर्तिकला, तथा स्थापत्य कलाओं का विवेचन किया है। नगर के गगनचुम्बी शाल (कोट) के शिखरों पर चित्रांकित नक्षत्र-मण्डल प्रदीपोत्सव के भ्रम से लोगों में आनन्द उत्पन्न कर देता था तथा कुण्डनपुर के गोपुर के ऊपर प्रकाशमान चन्द्रमा रात्रि में मुकुट की शोभा को धारण कर रहा था।'
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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