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________________ वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन विद्या के प्रभाव से वृक्ष आदि की डालें झुक जाती थीं और उष्णामिणी (उन्नामिनी) के प्रभाव से वे स्वयमेव ऊपर चली जाती थीं । मुख्य विद्याओं में गौरी, गांधारी, रोहिणी और प्रज्ञप्ति के नाम गिनाये गये हैं | 18 वीरोदय में विद्याएँ राजा सिद्धार्थ और प्रियकारिणी की विद्याओं के विषय में वीरोदय में कहा है - 267 एकाऽस्य विद्या श्रवसोश्च तत्त्वं सम्प्राप्य लेभेऽथ चतुर्दशत्वम् । शक्तिस्तथा नीतिचतुष्कसारमुपागताऽहो नवतां बभार ।। 14।। - वीरो.सर्ग. 3 । राजा सिद्धार्थ ने एक विद्या ही गुरू- मुख से सुनी थी, किन्तु इनकी प्रतिभा से वह चौदह विद्या रूप में इसी प्रकार रानी की विद्या विशद रूप अधीति (अध्ययन) बोध (ज्ञान - प्राप्ति) आचरण (तदनुकूल प्रवृत्ति) और प्रचार के द्वारा चतुर्दशत्व को प्राप्त हुई । वीरोदय में गणधर शुभाशुभ शकुन प्राचीन जैनसाहित्य में गणधरों का बड़ा महत्त्व बतलाया गया है। प्रत्येक तीर्थंकर के गणधर होते थे । भ. महावीर के प्रमुख गणधर गौतम थे । इनके अतिरिक्त अग्निभूति, वायुभूति आदि दश गणधर और थे। जैसे पारस - पाषाण के योग से लोहा शीघ्र सोना बन जाता है, पारे के योग से धातु शीघ्र रोग - नाशक रसायन बन जाती है उसी प्रकार भगवान वीर प्रभु के दिव्य उपदेश से श्रीगौतम इन्द्रभूति आदि का चित्त पाप से रहित निर्दोष हो गया था । यथा जवादयः स्वर्णमिवोपलेन श्रीगौतमस्यान्तरभूदनेनः । अनेन वीरप्रतिवेदनेन रसोऽगदः सागिव पारदेन ।। 44 ।। - वीरो. सर्ग. 1 .141 - दोनों कानों द्वारा परिणत हो गई । जैनसूत्रों में अनेक शुभ - अशुभ शकुनों का उल्लेख मिलता है।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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