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________________ 266 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन नरो न रौतीति विपन्निपाते नोत्सेकमेत्यभ्युदयेऽपि जाते। न्याय्यात्पथो नैवमथावसन्नः कर्त्तव्यमञ्चेत्सततं प्रसन्नः ।। 10।। -वीरो.सर्ग.17। मन्त्र और अन्धविश्वास अन्धविश्वास प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण रहे हैं। कितने ही मंत्र, मोहनी विद्या, जादू आदि का उल्लेख जैनसूत्रों में आता है, जिनके प्रयोग से रोगी चंगे हो जाते, भूत-प्रेत भाग जाते, शत्रु हथियार डाल देते, प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे की ओर आकर्षित होते, स्त्रियों का भाग्य उदय हो जाता, युद्ध में विजय लक्ष्मी प्राप्त होती और गुप्त-धन मिल जाता है। जैनागमों के अन्तर्गत चतुर्दश पूणे में विद्यानुवाद पूर्व में विविध मंत्र और विद्याओं का वर्णन है। आचार्य भद्रबाहु एक महान् नैमित्तिक थे, जो मंत्र-विद्या में कुशल थे। उन्होंने "उपसर्ग-हर-स्त्रोत" रचकर संघ के पास भेजा था, जिससे कि व्यंतरदेवों का उपद्रव शान्त हो सके। जैन श्रमणों की ऋद्धियाँ एवं विद्याएँ जैनश्रमणों की ऋद्धि-सेद्धियों के उल्लेख जैन-सूत्रों में मिलते. हैं। कोष्ठबुद्धि का धारक श्रमण एक बार सूत्र का अर्थ जान लेने पर उसे नहीं भूलता था। जंघा–चारण मुनि अपने तपोबल से आकाश में गमन कर सकते थे और विद्याचरण मुनि अपनी विद्या के बल से दूर-दूर तक जा सकते थे। विद्या, मंत्र और योग को तीन अतिशयों में गिना गया है। तप आदि साधनों से सिद्ध होने वाली को विद्या और पठन मात्र से सिद्ध होने वाले को मंत्र कहा है। जैनसूत्रों में उल्लेख है कि आर्यवज्र पादोपलेप द्वारा गमन करते थे और पर्युषण-पर्व के अवसर पर पुष्प लाने के लिए वे पुरीय से माहेश्वरी गये थे। विद्या-प्रयोग और मंत्र-चूर्ण के अतिरिक्त लोग हृदय को आकर्षित करके तथा संगोपन, आकर्षण, वशीकरण और अभियोग द्वारा भी जादू-मन्तर का प्रयोग करते थे।" अनेक विद्याओं के नाम जैनसूत्रों में आते हैं। ओणामणी (अवगामनी)
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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