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________________ 232 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन हे प्रफुल्लित कमलनयने! तीनों लोकों का अद्वितीय तिलक ऐसा तीर्थकर होने वाला बालक आज तुम्हारे गर्भ में अवतरित हुआ हैं- ऐसा संकेत यह स्वप्नावली दे रही है। लोकत्रयैकतिलको बालक उत्फुल्लनलिननयनेऽद्य। उदरे तवावतरितो हींगितमिति सन्तनोतीदम् ।। 40 ।। -वीरो.सर्ग.4। प्रियकारिणी! तुमने जो ऐरावत हाथी देखा है, उसी के समान तुम्हारा पुत्र भी इस मही-मण्डल पर सभी दिशाओं में दान (मद-जल) को वितरण करने वाला निष्पाप महान आत्मा होगा। द्वितीय स्वप्न में बैल, तृतीय स्वप्न में सिंह, चतुर्थ स्वप्न में हाथियों द्वारा अभिषेक की जाती हुई लक्ष्मी देखी है। उससे क्रमशः धर्म की धुरा को धारण करने वाला, उन्मत्त कुवादि-रूप हस्तियों के मद को निर्दयता से भेदने में दक्ष, तुम्हारे पुत्र का सुमेरू के शिखर पर इन्द्रों द्वारा निर्मल जल से अभिषेक होगा। पाँचवें स्वप्न में भ्रमरों से गुजार करती दो मालायें, छठवें स्वप्न में चन्द्रमा, सातवें स्वप्न में सूर्य, आठवें स्वप्न में जल से परिपूर्ण दो कलश, नवें स्वप्न में जल में क्रीड़ा करती हुई दो मछलियाँ, दशवें स्वप्न में सहस्र कमलों से परिपूर्ण सरोवर देखा है, वह पुत्र भी सुगन्ध से समस्त जगत् को व्याप्त करने वाला, धर्मामृत से जगत को सींचने वाला और तृष्णातुर जीवों को अमृत रूप सिद्धि को देने वाला होगा। . इसी प्रकार ग्यारहवें स्वप्न में समुद्र, बारहवें स्वप्न में सिहांसन, तेरहवें स्वप्न में सुर-सेवित विमान, चौदहवें स्वप्न में धवल वर्णमाला, पन्द्रहवें स्वप्न में निर्मल रत्नों की राशि देखी है, उसके समान ही तुम्हारा पुत्र भी समस्त लोगों के मनोऽनुकूल आचरण करने वाला, अनन्त निर्मल गुण रूप रत्नों से परिपूर्ण एवं महारमणीक होगा। प्रियकारिणी रानी अपने प्राणनाथ के श्रीमुख से मंगलमयी मधुरवाणी सुनकर हर्षाश्रुओं को बहाती हुई गोद में प्राप्त हुए पुत्र के समान रोमांचित हो गई।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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