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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
यहाँ देवगण हास्यरस के आश्रय हैं। ऐरावत हाथी आलम्बन - विभाव है। उसकी भ्रमपूर्ण चेष्टा उद्दीपन विभाव है।
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2. अद्भुत रस वीरोदय में अद्भुतरस का वर्णन दो स्थलों पर उपलब्ध होता है।
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(क) भगवान महावीर के गर्भावतरण के पश्चात् आकाश में सूर्य कोपराभूत करने वाला एक ऐसा प्रकाश पुन्ज दिखाई दिया, जिसे लोगों ने प्रश्न भरी दृष्टि से देखा
अथाभवद् व्योम्नि महाप्रकाशः सूर्यातिशायी सहसा तदा सः । किमेतदित्थं हृदि काकुभावः कुर्वन् जनानां प्रचलत्प्रभावः ।। 1 - वीरो.सर्ग. 5 ।
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यहाँ अद्भुत रस का आश्रय कुण्डनपुर का जनसमूह है। आकाश का प्रकाशपुंज आलम्बन विभाव है। उसकी अनायास उपस्थिति उद्दीपन विभाव है | कुतूहलपूर्वक देखना अनुभाव है । वितर्क और आवेग व्यभिचारी भाव हैं। अद्भुत रस की अनुपम छटा भगवान महावीर के समवशरण में उनकी दिव्य विभूति देखकर गौतम इन्द्रभूति के मन में होने वाले तर्क-वितर्क में दिखाई देती है।
चचाल दृष्टुं तदतिप्रसङ्गमित्येवमाश्चर्य परान्तरंग | स प्राप देवस्य विमानभूमिं स्मयस्य चासीन्मतिमानभूमिः । । 27 ।। - वीरो.सर्ग.13 ।
भगवान की दिव्य-विभूति के विषय में लोगों से सुनकर इन्द्रभूति विचारता है कि वेद-वेदांग का ज्ञाता होते हुए भी मुझे आज तक इस प्रकार की दिव्य विभूति नहीं मिली। इसके विपरीत वेद - शास्त्र - विहीन भगवान महावीर के पास यह सम्पूर्ण विभूति है। यह आश्चर्यजनक बात ऐसा सोचकर आश्चर्य चकित हो इन्द्रभूति भगवान का वैभव देखने के लिए चल पड़ा। उनके दिव्य समवशरण मण्डप में उसे अत्यधिक आश्चर्य हुआ । वहाँ उसका अभिमान नष्ट हो गया ।
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