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________________ 214 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन काव्य-नाट्य में वर्णित विभावादि निमित्त कारण है। इसके स्वरूप को समझने के लिए विभावादि के स्वरूप को समझना आवश्यक है। विभाव रसानुभूति के कारणों को विभाव कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं - एक आलम्बन-विभाव और दूसरा उद्दीपन-विभाव। जिसको आलम्बन करके रस की उत्पत्ति होती है उसको 'आलम्बन-विभाव' कहते हैं। जैसे सीता को देखकर राम के मन में और राम को देखकर सीता के मन में रति की उत्पत्ति होती है और उन दोनों को देखकर सामाजिक के भीतर रस की अभिव्यक्ति होती है। इसीलिए सीता राम आदि श्रृंगार रस के आलम्बन विभाव हैं। चाँदनी, उद्यान एकान्त आदि के द्वारा उस रति का उद्दीपन होता है। इसलिए उसे श्रृंगार रस का 'उद्दीपन' विभाव कहा जाता है। अनुभाव स्थायीभाव रसानुभूति का प्रयोजक अन्तरंग कारण है। आलम्बन व उद्दीपन विभाव उसके बाह्य कारण हैं। अनुभाव उस आन्तरिक रसानुभूति से उत्पन्न, उसकी बाह्याभिव्यक्ति के प्रायोजक शारीरिक व मानसिक व्यापार हैं। साहित्य-दर्पणकार के अनुसार अनुभाव का लक्षण इस प्रकार है - उबुद्धं कारणैः स्वैः स्वैर्बहिभावं प्रकाशयन् । लोके यः कार्यरूपः सोऽनुभावः काव्यनाट्ययोः ।। 3/32 | लोक में यथायोग्य कारणों से स्त्री-पुरूषों के हृदय में उबुद्ध रत्यादि भावों को बाहर प्रकाशित करने वाले जो शारीरिक व्यापार होते हैं वे लोक में रत्यादि भावों के कार्य तथा काव्य-नाट्य में अनुभाव कहे जाते हैं। काव्य-नाट्य में इनकी अनुभाव संज्ञा इसीलिये की है कि वे विभावों द्वारा रसास्वादन रूप में अंकुरित किये गए सामाजिक आदि के स्थायीभाव को रस रूप में परिणत करने का अनुभवनरूप व्यापार करते हैं। 'अनुभावनमेवम्भूतस्य इत्यादिः समनन्तरमेव रसादि रूपतया भावनम्'
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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