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________________ 202 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन सा।। भगवान को जब दिव्यबोधि प्राप्त हो गया तो संसार की समस्त विधाओं में से कोई भी विद्या अवशिष्ट कैसे रह सकती थी ? आकाश में कलाधर (चन्द्र) के रहते हुये ताराओं की पंक्ति तो स्वतः ही अपने परिवार के साथ उदित हो जाती है। 8. अतिशयोक्ति - लक्षण - निगीर्याध्यवसानन्तु प्रकृतस्य परेण यत्। प्रस्तुतस्य यदन्यत्वं यद्यर्थोक्तौ च कल्पनम् ।। कार्य - कारणयोर्यश्च पौर्वापर्यविपर्ययः । विज्ञेयाऽतिशयोक्तिः उपमान के द्वारा उपमय का निगीरण करके अध्यवसान करना/प्रस्तुत अर्थ का अन्य रूप से वर्णन करना/यदि के समानार्थक शब्द लगाकर कल्पना करना, ,कार्य-कारण के पौर्वापर्य का विपर्यय करना अतिशयोक्ति अलंकार है। उदाहरण मेरोर्यदौद्धत्यमिता नितम्बे फुल्लत्वमब्जादथवाऽऽस्यबिम्बे । गाम्भीर्यमब्धेरूत नाभिकायां श्रोणौ विशालत्वमथो धराया।। 22।। -वीरो.सर्ग. 31 उस रानी ने अपने नितम्ब भाग में सुमेरू की उद्धतता को, मुख–बिम्ब में कमल की प्रफुल्लता को, नाभि में समुद्र की गम्भीरता को और भोणिभाग में पृथ्वी की विशालता को धारण किया था। 9. अर्थान्तरन्यास - लक्षण- सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते। यत्तु सोऽर्थान्तरन्यासः साधर्म्यणेतेरण वा ।। सामान्य अथवा विशेष का उससे भिन्न के द्वारा जो समर्थन किया प -
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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