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________________ 198 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन 3. श्लेष - लक्षण - वाच्यभेदेन भिन्ना यद् युगपद्भाषणस्पृशः । श्लिष्यन्ति शब्दाः श्लेषोऽसावक्षरादिभिरष्टधा।।' अर्थ का भेद होने पर भिन्नार्थक शब्द जब मिलकर एक हो जाते हैं तब वह श्लेष कहलाता है। चन्द्रप्रभं नौमि यदंगसारस्तं कौमुदस्तोममुरीचकार । सुखञ्जनः संलभते प्रणश्यत्तगस्तयाऽऽत्मीयपदं समस्य ।। 3 ।। -वीरो.सर्ग.1। ___ इस पद्य में 'कौमुदस्तोम' शब्द में श्लेष है। उक्त पद को विभक्त करने पर कौ अर्थात् पृथ्वी पर मुदस्तोम अर्थात् हर्षातिरेक हो गया है। द्वितीय चन्द्रपक्ष में “कुमुदानां समूहः कौमुदः"- ऐसा समास करने पर चाँदनी श्वेत कमलों के समूह को विकसित कर रही है ऐसा उभयकोटिक अर्थ निकल रहा है। शीतकाल के वर्णन में श्लेष की छटा का एक और उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैशाखिषु विपल्लवत्वमथेतत् संकुचितत्वं खलु मित्रेऽतः। शैत्युमुपेत्य सदाचरणेषु कलहमिते द्विजगणेऽत्र मे शुक् ।। 43।। ___ -वीरो.सर्ग.91 इस श्लोक के दो अर्थ हैं। एक शीतकाल के पक्ष में और दूसरा आपत्काल के पक्ष में। श्लोक का एक अर्थ इस प्रकार है- शीतकाल को पाकर वृक्षों का पत्तों से रहित हो जाना, दिन का छोटा होना, पैरों का ठिठुरना और दाँतों का किटकिटाना मेरे लिए शोक का कारण है। श्लोक का दूसरा अर्थ है - "कुटुम्बीजनों का विपत्ति-ग्रस्त होना, मित्र का संकुचित एवं उदासीनतामय व्यवहार, सदाचरण में शैथिल्य और ब्राह्मणों में कलह होना मेरे लिए शोचनीय है। अर्थालंकार - अर्थ में सौन्दर्य होने से कुछ अलंकार अर्थालंकार कहलाते हैं।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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