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190 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन वीरोदय में स्वप्न-वर्णन स्थल पर 26 श्लोकों में प्रयुक्त किया है। लक्षण –यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि।
अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश साऽर्या ।। उदाहरण -श्रीजिनपदप्रासादादवनौ कल्याणभागिनी च सदा। भगवच्चरणपयोजभ्रमरी या संश्रृणूत तया।। 34 ।।
-वीरो.सर्ग.4। प्रयोग स्थल - चतुर्थ सर्ग – 34-36, 39-561 7. वंशस्थ – इस महाकाव्य में 25 पद्यों में इस छन्द को निबद्ध किया
लक्षण - 'जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ।' उदाहरण – समुन्नतात्मा गजराजवत्तथा धुरन्धरोऽसौ धवलोऽवनौ यथा। स्वतन्त्रवृत्तिः प्रतिभातु सिंहवद्रमात्मवच्छश्वदखण्डितोत्सवः ।। 57 ।।
-वीरो.सर्ग.41 प्रयोग स्थल - चतुर्थ सर्ग - 57-60। नवम सर्ग - 1, 4, 7-13, 15, 20, 22-271 8. बसन्ततिलका
आचार्यश्री ने इस छन्द को वीरोदय महाकाव्य में 40 पद्यों में निबद्ध किया है। लक्षण - 'उक्ता बसन्ततिलका तभजाजगौ गः।' उदाहरण – वीरस्तु धर्ममिति यं परितोऽनपायं विज्ञानतस्तुलितमाह जगद्-हिताय । तस्यानुयायिधृतविस्मरणादिदोषाद्याऽभूद्दशा क्रमगतोच्यत इत्यहो सा।। 1 ।।
___ -वीरो.सर्ग.221 प्रयोग स्थल बीसवाँ – 25 | इक्कीसवाँ सर्ग - 22, 23, 24 । बाइसवाँ सर्ग - 1-271