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________________ वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन वियोगिनी आचार्य श्री के काव्यों में तृतीय स्थान प्राप्त इस छन्द को कुछ आचार्यों ने सुन्दरी नाम दिया है । वीरोदय महाकाव्य के 42 पद्य वियोगिनी छन्द में निबद्ध है । उदाहरण अथ जन्मनि सन्मनीषिणः प्रससाराप्यभितो यशः किणः । जगतां त्रितयस्य सम्पदा क्षुभितोऽभूत्प्रमदाम्बुधिस्तदा ।। 1 ।। - वीरो.सर्ग. 7 । 30 । सप्तम सर्ग 1-37 | प्रयोग स्थल चतुर्थ सर्ग मात्रासमक इस महाकाव्य में सर्ग समाप्ति पर 12 पद्यो में 16 मात्राओं वाले इस छन्द का प्रयोग किया गया है । लक्षण 'मात्रासमकं नवमोल्गान्तम् ।' उदाहरण - इति दुरितान्धकारके समये नक्षत्रौघसङ्कु लेऽघमये । अजनि जनाऽह्लादनाय तेन वीराह्वयवरसुधास्पदेन ।। 39 । । - वीरो. सर्ग. 1 । - प्रयोग स्थल आर्या - - नवम् सर्ग चतुर्थ सर्ग - — - - - 44। दशम सर्ग – 39। तृतीय सर्ग 61 । षष्ठ सर्ग 38, 39, 40 | द्रुतविलम्बित 9 श्लोकों में किया है । लक्षण 'द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ ।' उदाहरण न हि पलाशतरोर्मुकुलोद्गतिर्वनभुवां नखरक्षतसन्ततिः । लसति किन्तु सती समयोचितासुरभिणाऽऽकलिताऽप्यतिलोहिता ।। 31 । । - वीरो. सर्ग. 6 189 प्रयोग स्थल षष्ठ सर्ग 29, 32, 36 | - 34 | इस छन्द का प्रयोग ग्रंथकार ने वीरोदय महाकाव्य में मात्रिक छंदों में गणनीय इस छन्द को आचार्य श्री ने
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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