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वीरोदय का स्वरूप
सूक्तियाँ
पापाद् घृणा किन्तु न पापिवर्गान्मनुष्यतैवं प्रभवेन्निसर्गात् ।। 17 / 7।।
पाप से घृणा करना चाहिये, किन्तु पापियों से नहीं। मनुष्यता स्वभाव से ही यह संदेश देती है ।
सन्दर्भ
1. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, पृ. 181 - 182 |
2. अलंकार चिन्तामणि, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण 1 / 102 |
3. षट्खण्डागम, धवलाटीका का समन्वित प्रथम जिल्द पृ. 6 |
4. तत्त्वार्थसूत्र अ. 5 सूत्र - 301
5. तत्त्वार्थसूत्र अध्याय अ. 9 सूत्र
6. तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 9, सूत्र 3 |
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