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________________ वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन ‘कायवाङ्मनःकर्मयोगः । स आस्रवः ।' त.सू.अ. 6 सूत्र - 1,2 अस्रवाश्रित कर्मों का बन्ध कषाय के आधार पर होता है। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय, ये बन्ध के कारण है। 'सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुलनादत्ते सः बन्धः । 166 - त.सू. अ.8 सूत्र - 21 आचार्य समन्तभद्र ने लिखा है कि मोह सहित अज्ञान से बन्ध होता है। जो अज्ञान मोहनीय कर्म - प्रवृत्ति - लक्षण से युक्त है, वह स्थिति अनुभाग रूप स्वफलदान समर्थ कर्म बन्ध का कर्त्ता है और जो अज्ञान - मोह से रहित है वह कर्मबन्ध का कर्त्ता नहीं है। जो अल्पज्ञान मोह से रहित है उसे मोक्ष होता, परन्तु मोह - सहित अल्पज्ञान से कर्मबन्ध होता है । अज्ञान्मोहिनो बन्धोन ज्ञानाद् वीतमोहतः । ज्ञानस्तोकाच्च मोक्षः स्यामोहान्मोहिनोऽन्यथा । । कर्म करते समय यदि जीव का भाव शुद्ध होता है तो बँधने वाले कर्म - परमाणुओं पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। उनका फल भी शुभ होता है और यदि भाव अशुद्ध हुए तो फल अशुभ होता है। जिस प्रकार मन के क्षोभ का प्रभाव भोजन पर पड़ता है और भोजन ठीक से नहीं पचता, उसी प्रकार मानसिक भावों का प्रभाव अचेतन वस्तुओं पर पड़ता है । द्रव्य तथा भाव के भेद से कर्म के दो भेद हैं । ज्ञानावरणादि रूप पुद्गल का पिण्ड द्रव्य-कर्म है और द्रव्य पिण्ड में जो फल देने की शक्ति है, वह भाव - कर्म है । कर्म-ग्रन्थों में इनका विस्तार से विश्लेषण किया गया है। सात तत्त्व मुक्ति-प्राप्ति हेतु तत्त्वज्ञान की आवश्यकता होती है । वे तत्त्व सात हैं। तत्त्वज्ञान के अभाव में मोक्ष-प्राप्ति सम्भव नहीं है। जिस वस्तु का जो भाव है, वह तत्त्व कहलाता है । वस्तु के असाधारण स्वरूपभूत स्वतत्त्व को तत्त्व कहते हैं । "तत्त्व" शब्द भाव - सामान्य का वाचक है । "तत्त्व - शब्दो भाव- सामान्यवाची । कथम् ? तदिति सर्वनाम-पदम् । सर्वनाम च सामान्ये वर्त्तते तस्य भावस्तत्त्वम् ।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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