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वीरोदय का स्वरूप
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स्वयं बोलता है, न दूसरों से बुलवाता है, उसे सन्त जन स्थूलमृषावाद विरमण कहते हैं - स्थूलमलीकं न वदति न परान् वादयति सत्यमपि विपदे । यत्तद्वदन्ति सन्तः स्थूलमृषावाद - वैरमणम् ।। 55 ।।
-रत्न.श्रा.। मनुस्मृति में कहा है कि - सत्य बोलो, वह भी प्रिय बोलो, अप्रिय सत्य न बोलो तथा प्रिय होने पर भी असत्य न बोलो- यही सनातन धर्म
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयाद् एष धर्मः सनातनः।।
-मनुस्मृति अ. 4 3. अचौर्याणुव्रत
अचौर्यणुव्रत के लिये कुन्दकुन्द ने स्थूल आदत्त-परिहार तथा समन्तभद्र ने अकृशचौर्य उपरमण नाम दिये हैं। 'चाउज्जामसंवर में अदिण्णादान विरमण' नाम आया है। संस्कृत ग्रन्थों में इसे 'अदत्तादान विरमण' कहा है। आ. समन्तभद्र ने कहा है - "किसी की रखी हुई भूली हुई, या गिरी हुई वस्तु को न स्वयं लेना ओर न उठा कर दूसरे को देना अचौर्यागुणव्रत है। निहितं वा पतितं वा सुविस्मृतं वा परस्वमविसृष्टम् । न हरति यन्न च दत्ते तदकृशचौर्यादृपारमणम् ।। 57 ।।
-रत्न. श्रा.। 4. ब्रह्मचर्याणुव्रत
चतुर्थ अणुव्रत के लिये परदार-निवृत्ति, स्वदार-सन्तोष, स्थूल ब्रह्मचारी आदि नाम आये हैं। आचार्य कुन्दकुन्द ने ‘परमहिला-परिहार नाम दिया है। समन्तभद्र ने रत्नकरण्डक में लिखा है कि "जो पाप